आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
आदिलश्मी
जिस लक्ष्मी से हम सभी परिचित हैं वह रुपया, पैसा, सोना, चाँदी, जमीन, जायदाद आदि के रूप में देखी और समझी जाती है। यह स्थूल है, इसका महत्त्व भी मामूली-सा है। इसे उलूकवाहिनी, चंचला, माया आदि के हेय नामों से संबोधित किया जाता है। यह नशे के समान मादक और अविवेकी लोगों के लिए उनके अधिक दुर्गुण होने का कारण भी मानी जाती है। इसलिए महापुरुष इसे त्याज्य भी बताते हैं। आत्मकल्याण के तीव्र आकांक्षी इसे त्याग देते हैं और साधारण लोगों को भी इसका सीमित संचय करने एवं अपरिग्रही स्वभाव बनाने का आदेश है। पर आदिलक्ष्मी गायत्री उन २ संपदाओं की जननी है जिनका वर्णन गीता के सोलहवें अध्याय के आरंभिक तीन श्लोकों में किया गया है। इन्हें प्राप्त करने वाला विपुल रत्नराशि के भंडार का स्वामी बनने की अपेक्षा अधिक उन्नतिाशील, सुखी तथा संतुष्ट देखा जाता है। दैवी संपदाएँ जो आत्मा के लिए आत्मिक रत्नजड़ित आभूषणों के समान शोभनीय हैं। गायत्री के द्वारा ही प्राप्त होती हैं।
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