आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
ऊर्ध्वकेशी
अर्थात जिसके बाल ऊपर को हों। यहाँ बालों से मतलब इन बालों से नहीं है जो सिर पर दीखते हैं और जिन्हें काढ़ा-सँभाला जाता है, वरन् मस्तिष्क से निकलने वाली इन किरणों से आशय है जो विचार-प्रवाह के रूप में, सूक्ष्म विद्युत् तरंगों के रूप में निकलती रहती हैं। गायत्री से प्रभावित मस्तिष्क सदा ही ऊध्र्वगामी विचार करता है। पतनकारी, अधोगामी प्रवृत्ति पर अंकुश लगता है और वह प्रवाह कुमार्ग की ओर न जाकर सन्मार्ग की दिशा में ही प्रवाहित रहता है। गायत्री अपने साधक को ऊध्र्वगामी बनाती है और वह उच्चता की ओर दिन-दिन बढ़ते हुए अंतत: ऊध्र्व लोकों को ही प्राप्त कर लेता है।
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