आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
गुणात्रयविभाविता
गायत्री सत्, रज, तम तीनों गुणों से परिपूर्ण है। जिस प्रकार वात, पित्त, कफ तीनों तत्त्व शरीर में संतुलित रहने पर ही स्वास्थ्य ठीक रहता है, उसी प्रकार सत्, तम तीनों ही तत्त्व मन:क्षेत्र में आवश्यक मात्रा में उपस्थित रहें तभी उसका काम ठीक प्रकार चलता है। गायत्री की इन तीनों विशेषताओं को तीन देवियों के रूप में चित्रित किया गया है-सतोगुण की प्रतीक सरस्वती, रजोगुण की प्रतीक लक्ष्मी, तमोगुण की प्रतिनिधि काली। इन तीनों को बुद्धि, संपत्ति और शक्ति इन तीनों नामों से भी पुकारते हैं। सतोगुणी को जीवन में प्रधान माना जा सकता है, पर शरीर निर्वाह के लिए अन्न, वस्त्र, मकान आदि के रूप में रजोगुण और अपनी या दूसरे की दुष्टता के प्रति क्रोध, उससे संघर्ष के रूप में तमोगुण भी आवश्यक है। गायत्री के तीन अक्षर इन तीनों गुणों के प्रतिनिधि हैं। वह साधक को आवश्यक मात्रा में इन तीनों को ही प्रदान करती है। इसलिए गायत्री को गुणत्रयविभाविता कहा गया है।
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