ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3 देवकांता संतति भाग 3वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''कृपा करके मुझे इन खतों में से कोई एक खत दिखाया जाए।'' हरनामसिंह बोले। सुरेन्द्रसिंह ने उनकी इस विनती को स्वीकार कर लिया और उनके आदेश पर जसवन्तसिंह ने आगे बढ़कर वह खत हरनामसिंह को पकड़ा दिया। हरनामसिंह ने खत हाथ में लिया और उसकी लिखाई देखते ही चौंककर बोले- ''ओह! अब हमारी समझ में आया, वास्तव में ही हमें फंसाने की यह साजिश है। महाराज ये हमारी लिखाई नहीं है!''
''क्या?'' इस बार शेरसिंह चौंककर बोला- ''तुम्हारी लिखाई नहीं है?''
''हां शेरसिंह!'' हरनामसिंह एकदम बोले- ''हमारा यकीन करो या खुद तुम हमारी जांच कर सकते हो। इस खत में लिखी लिखाई हमारी नहीं है। जरूर किसी ने हमें फंसाने के लिए यह चाल चली है। यह खत इस तरह जरूर लिखा गया है, जैसे हमने लिखा हो, मगर साजिश करने वाला यहां धोखा खा गया कि वह हमारी लिखाई की नकल न कर सका। और बातें हम बाद में करेंगे, पहले हमारी लिखाई से मिलाकर इन बातों की जांच कर ली जाए।''
अब तो शेरसिंह को भी यह पता लगा कि कहीं वास्तव में ही तो यह किसी की साजिश नहीं है? उधर राजा सुरेन्द्रसिंह ने भी प्रश्नात्मक दृष्टि से शेरसिंह की ओर देखा। शेरसिंह आगे बढ़ा और अपने ऐयारी के बटुए से कलम, दवात और कागज निकालकर हरनामसिंह को दी। हरनामसिंह ने सहर्ष अपनी लिखाई उन्हें दे दी। सचमुच जब इस लिखाई को उन पत्रों से मिलाया गया तो भिन्न पाया गया। अब यह साबित हो गया कि यह पत्र हरनामसिंह ने नहीं लिखे हैं। जब यह रहस्य शेरसिंह ने दरबार में जाहिर किया तो हल्की-सी खुसर-पुसर होकर पुन: शान्ति छा गई। सबको यही इन्तजार था कि अब क्या कार्यवाही होती है?
''इसका मतलब किसी दुष्ट ने हमारे भाई को फंसाने की चेष्टा की है।'' इस समय सुरेन्द्रसिंह बहुत गुस्से में थे किन्तु ये पत्र यह तो जाहिर करते ही हैं कि हमारी रियासत का कोई आदमी चन्द्रदत्त से मिला हुआ है - जो खुद को चालाकी से बचाकर हमारे भाई को फंसाना चाहता था। या तो वह दुष्ट भरे दरबार में खुद बता दे अन्यथा हमारे ऐयार तो उसका पता लगा ही लेंगे। अगर इस समय उस गद्दार ने अपने को प्रकट किया तो शायद हम उसे माफ भी कर दें और अगर हमारे ऐयारों ने उसे पकड़ा तो हम उसे सजाए-मौत से कम न देंगे।'' सुरेन्द्रसिंह के इन शब्दों के बाद दरबार में सन्नाटा छा गया। कोई सामने नहीं आया और न ही किसी को यह उम्मीद थी कि इतनी चालाकी से जाल फैलाने वाला इतनी आसानी से सामने आ जाएगा। अन्त में हरनामसिंह ने सन्नाटा तोड़ा-
''वह नमकहराम इतनी आसानी से सामने नहीं आएगा महाराज, हमारे ऐयारों को ही उसका पता लगाना होगा। किसी ने बहुत सोच-समझकर यह चाल चली है। मगर मैं भी भरे दरबार में कसम खाता हूं कि वह पापी जो भी है - जब तक मैं उसका पता नहीं लगा लूंगा.. तब तक चैन की सांस नहीं लूंगा।''
''तुम्हारा क्या ख्याल है शेरसिंह - क्या इस भरे दरबार में पता लगा सकते हो कि वह दुष्ट जालसाज कौन है?'' सुरेन्द्रसिंह ने शेरसिंह से कहा।
''इस समय तो यह पता लगाना बहुत कठिन है महाराज।'' शेरसिंह ने कहा- ''मगर हम इतना जरूर कह सकते हैं कि जब तक हम उसका पता नहीं लगा लेंगे, हमें भी चैन नहीं मिलेगा, वह आदमी जो कोई भी है, अपने-आपको बहुत चालाक समझता है। शायद इसका पता लगाने में हमें भी ऐयारी का आनंद आए।''
इस तरह काफी देर तक दरबार में यही विषय चर्चा का सबब रहा। दोपहर को दरबार बर्खास्त हुआ और सभी अपने दिल में वह तरद्दुद लिये उठे। सभी अपने-अपने कामों में लग गए। आइए, हम जरा उन ऐयारों के साथ चलते हैं जो सभी शेरसिंह की भांति राजा सुरेन्द्रसिंह के नौकर हैं। कदाचित् हमें इन ऐयारों की बात से कोई भेद की बात पता लग सके। कुल मिलाकर इन ऐयारों की संख्या पांच है। इनमें शेरसिंह और गोपालदास भी हैं। बाकी तीन ऐयारों के नाम मुन्नालाल, चन्दराम और नरेन्द्रनाथ हैं। ये पांचों ही ऐयार इसी विषय पर बात करते हुए बढ़े चले आ रहे हैं। हम अपने पाठकों को साथ लिये उनके पीछे केवल इसीलिए चल रहे हैं कि शायद हमें उनकी बातों से कोई और भेद की बात पता लग सके। हम देखते हैं कि बात करते हुए वे एक मकान में पहुंच जाते हैं। यह मकान दरअसल ऐयार मुन्नालाल का है। मुन्नालाल क्योंकि अभी तक कुंआरा है अतः उनकी मंडली उसी के घर पर जमती है।' वे सभी वहां पहुंच गए ---- और एक चटाई पर बैठकर बातें करने लगे। आइए... इनकी बातें सुनें, कदाचित् किसी भेद पर से पर्दा उठ सके --- देखिए, वो नरेन्द्रनाथ कह रहा है-
''कुछ समझ में नहीं आता कि हमारी रियाया में गद्दी का इतना लालची कौन हो सकता है, जो महाराज सुरेन्द्रसिंह का कत्ल...।''
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