ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
यह शब्द देखते ही कोई भी साफ पहचान सकता था कि यह किसी के खून से लिखा गया है। कई सायत तक सभी आखें फाड़े उसे देखते रहे,. फिर गुरुवचनसिंह बोले- ''बिल्कुल यही है... ये देखो... इसके ऊपर जो रक्तकथा लिखा है, यह राक्षसनाथ ने खुद अपने खून से लिखा है। इसी तरह से यह सारा ग्रन्थ राक्षसनाथ ने अपने ही खून से लिखा है। यही राक्षसनाथ के तिलिस्म की चाबी है।'' सभी उसको उलट-पुलटकर देखना चाहते थे...किन्तु गुरुवचनसिंह ने उस जड़ाऊ डिब्बे को बन्द करके सबके इरादों पर पानी फेरते हुए कहा- ''हम जानते हैं कि आप सब इसे देखने के लिए बेचैन हैं...आप देखना चाहते हैं कि आखिर ये रक्तकथा कैसी है...जिसके पीछे एक सदी से हर आदमी लगा हुआ है और जिसके पास यह होती है वह अपने जमाने का सबसे धनवान आदमी कहलाता है। आप चिन्ता न करें... जी भरकर इसे देखें...हम सब इसे पढ़ेंगे भी... लेकिन इससे पहले हम यह जरूरी समझते हैं हम अपने इन चारों बहादुरों से, जिन्होंने इतना बड़ा काम किया है, ये तो पूछ लें कि इन्होंने यह महान काम किस ढंग से, कैसी-कैसी बहादुरी से किया? हमें उन पर फख्र होना चाहिए।''
सभी गुरुवचनसिंह की इस बात से सहमत हुए और जी खोलकर सभी ने उन चारों की तारीफ की और पूछा कि उन्होंने यह काम किस तरह किया, तो जवाब में गुलशन ने यूं कहना शुरू किया- ''आपका (गुरुवचनसिंह) हुक्म पाते ही हम चारों पिशाचनाथ से मिले! आपने इस काम के लिए खासतौर पर हमें ही इसलिए चुना था... क्योंकि बाहर का कोई भी आदमी यह नहीं जानता था कि हम गौरवसिंह के लिए ऐयारी करते हैं। पिशाच से मिलते ही हमने उसके पैर पकड़ लिए और कहा... 'हम चारों कंचनगढ़ के क्षत्रिय कुलों के लड़के हैं और हमारी ऐयारी में बड़ी दिलचस्पी है। किसी राजा-महाराजा के यहां ऐयार बनने के लिए जरूरी है कि हम किसी दबंग ऐयार को अपना गुरु मानकर उससे ऐयारी सीखें। ऐयारी के मामले में हमने आपका (पिशाचनाथ का) बड़ा नाम सुना है। हमने सुना है कि इस जमाने में आपसे बढ़कर कोई ऐयार नहीं है... आप ऐयारों के शहनशाह हैं।' इसी तरह पिशाचनाथ की तारीफों के पुल बांधकर हमने उसको चढ़ा दिया और चारों ही उसके पैर मजबूती से पकड़कर लेट गए, हमने कहा कि- 'हमने दिल-ही-दिल में पहले से आपको गुरु मान लिया है, अब हम इन पाकीज़ा चरणों उस समय तक नहीं छोड़ेंगे, जब तक कि आप हमें अपना शागिर्द नहीं मानेंगे।' इस तरह से हमने पिशाचनाथ, से खुद को उसका चेला बनाने की दरख्वास्त की और आखिर में हमने उसके पैर तभी छोड़े...जब उसने हमें अपना शागिर्द कहा।
''हमारे ख्याल से उसने हमारे बारे में यह जांच भी करवाई थी कि हमने अपना जो परिचय उसे दिया है, वह गलत है या सही। आपने इस बात का इन्तजाम कंचनगढ़ में पहले ही कर दिया था, अत: हम उसकी जांच पर खरे उतरे थे। फिर क्या था... हम उसके शागिर्दों में मिल गए। अपने शागिर्दों को वह अधिकतर मठ पर रखा करता है और वहीं ऐयारी सिखाता है। शागिर्दों से वह बहुत कुछ काम भी लेता है... काफी दिन तक तो हम यह महसूस करते रहे कि उसने अपने पुराने शागिर्दों को हम पर नजर रखने का हुक्म दे रखा है, इसीलिए हम आपसे नहीं मिल सके। धीरे-धीरे हमने उसका यकीन जीतने की कोशिश की और कोई पैंतालीसवें दिन उसने हमें भी अपने पुराने ऐयारों को तरह ही एक काम सौंपा... हमने उसका यक़ीन जीतने के लिए वह काम बखूबी किया। उसके बाद वह हमें रोज-रोज नए काम बताने लगा। न जाने पिशाचनाथ किन-किन चक्करों में उलझा रहता है कि उसके पास बहुत काम है। वह हमें अक्सर ऐसे ही काम सौंपता था, जिससे हमारी समझ में उसका मकसद भी नहीं आता था और उसका काम निकल जाता था। खैर.. यहां उन बातों का कोई मतलब नहीं है कि वह हमें क्या-क्या काम सौंपा करता था। मुख्तसर यह है कि धीरे-धीरे हमने उसका दिल जीत लिया और वह हम चारों को अपने सभी शागिर्दों से ज्यादा मुहब्बत करने लगा। आज से कोई पांच दिन पहले की बात है कि उसने हम चारों को मठ के तहखाने में बुलाया और कहा... 'तुम चारों मेरे सबसे बाद के शागिर्द हो, लेकिन सबसे होनहार हो, यह मैंने अभी तक तुम्हारे कामों से देखा है।'
''बस... आपकी जर्रानवाजी है, गुरुजी!' बेनीसिंह ने कहा- 'वर्ना हम किस काबिल हैं।'
''अब तो ये छोटे-मोटे काम करते-करते हम उकता गए गुरुजी।' नाहरसिंह बोला- 'अगर आपको हम पर यकीन हो तो कोई बड़ा और जुम्मेदारी का काम सौंपिए। हमें मजा भी आएगा और उसी बहाने आप हमारा इम्तिहान भी ले लेंगे... हम ऐयारी का कोई बड़ा काम करना चाहते हैं।'
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