ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''इसीलिए तो मैंने तुम चारों को आज यहां तखलिए में बुलाया है।' पिशाचनाथ ने कहा- 'मुझे चारों पर पूरा यकीन है और साथ ही इस बात का फख्र भी है कि तुम जैसे काबिल आदमी मेरे शागिर्द हैं। क्या तुम मेरी कसम खा सकते हो कि जो काम मैं आज तुम्हें सौंपूंगा, उसे तुम बिल्कुल गुप्त रखोगे और अपनी जान की भी परवाह न करके करोगे?'
''हमें भला उसकी कसम खाने में क्या हिचक थी? हमने उसे यकीन दिला दिया कि हम उसके वफादार हैं और वह हमें जो भी हुक्म देगा उसे हम पूरी हिफाजत से करेंगे। जब उसे यकीन हो गया तो बोला - 'सुनो-आज मैं तुम्हें बहुत ही जिम्मेदारी का काम सौंप रहा हूं... अगर इस काम में जरा भी गड़बड़ हो गई ते समझ लो कि तुम्हारे गुरु की सारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। मुझे तुम्हारी वफादारी पर यकीन है, इसीलिए मैं तुम्हें एक ऐसी गुप्त बात बता रहा हूं जिसका कि मेरे अलावा आज तक किसी को पता नहीं है... तुम्हें भी वह भेद गुप्त ही रखना है।' हमने उसे यकीन दिलाया कि हम उस भेद को अपनी जान से भी बढ़कर प्यार करेंगे। तब उसने कहा- 'तुमने कभी किसी के मुंह से रक्तकथा का नाम तो सुना ही होगा?'
''असलियत तो यह थी कि रक्तकथा का नाम सुनते ही हम चारों के दिल धड़कने लगे थे... मगर हममें से किसी ने भी अपने चेहरे पर ऐसे भावों को नहीं आने दिया और मैं बोला... रक्तकथा ... जी नहीं तो, हमने यह नाम पहले कभी नहीं सुना... यह क्या चीज है?' - ''मेरा यह जवाब सुनकर पिशाचनाथ ने मुझे घूरा, फिर सोचा कि ये चारों नए ऐयार बने हैं, फिर भला ये रक्तकथा के बारे में कहां से और कैसे सुन सकते हैं! बोला- 'मैं तुम्हें रक्तकथा के बारे में बताता हूं... रक्तकथा असल में एक किताब है, जो मेरे पिता ने मुझे मरते हुए सौंपी थी।' इस तरह से वह हमें रक्तकथा के बारे में बताने लगा।
''हम जानते थे कि वह जो कुछ भी कह रहा है, बिल्कुल झूठ है लेकिन हम सुनते रहे, वह कहता रहा... 'उन्होंने मरते समय मुझे यह किताब दी थी और कहा था कि इसकी हिफाजत तुम अपनी जान से भी ज्यादा समझना... इसका भेद गुप्त रखना और किसी को भी मत बताना, लेकिन आज मजबूर होकर तुम्हें बता रहा हूं। उसका सबब ये है कि मुझे तुम्हारी वफादारी पर फख्र है... आज तक मैं उसकी हिफाजत करता रहा था, लेकिन परसों शाम को मैं किसी काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूं मेरी गैरहाजिरी में उस कीमती चीज की हिफाजत तुम्हें करनी होगी। ये समझ रखना कि मैंने अपनी जिन्दगी का सबसे हिफाजत का काम तुम्हें सौंपा है।'
''हमें इस बात का फख्र है, गुरुजी कि आपने हमें इस लायक समझा।' भीमसिंह ने कहा- 'लेकिन आपने यह तो बताया ही नहीं कि हमें उसकी हिफाजत करनी किस तरह होगी? जब तक हमें यह पता नहीं होगा कि रक्तकथा रखी कहां है, हम हिफाजत कैसे करेंगे?
''तुम चारों हमारे घर पर आए दिन जाते रहते हो।' पिशाचनाथ ने कहा- 'तुमने देखा है कि हमारे घर में एक कमरे में मन्दिर है। उसमें की हनुमानजी की एक बड़ी-सी मूर्ति है। बस... तुम्हें मेरी गैरहाजिरी में मूर्ति की हिफाजत करनी है। उस के दांए हाथ में जो सोने की गदा है, अगर उसे हाथ में से निकाल लिया जाए तो हनुमानजी की मूर्ति की छाती ठीक इस ढंग से फटने लगती है जैसे हनुमान अपना सीना चीरकर अपने दिल में बसे राम और सीता को दिखा रहे हों लेकिन उस मूर्ति के सीने में राम-सीता नहीं हैं, वह एक गुप्त रास्ता है जो रक्तकथा तक जाता है।''
''इस तरह से उसने हमें रक्तकथा तक पहुंचने का सारा रास्ता बता दिया। वहां तक पहुंचने का रास्ता हम आपको आगे चलकर बताएंगे। यहां तो मुख्तसर में केवल इतना ही समझ लीजिए कि उसने हमें सारा रास्ता बता दिया और हमसे इस भेद को न खोलने के हजारों वादे लिये। हमने उसे पूरा यकीन दिला दिया कि हम उससे किसी तरह धोखा नहीं करेंगे। अब हमें उस वक्त का इन्तजार था जब पिशाच कुछ दिनों के लिए बाहर जाए और हम अपना काम करें।
''हम बेताबी से यह इन्तजार कर रहे थे कि न जाने कैसे बेगम बेनजूर के ऐयार शैतानसिंह को यह पता लग गया कि रक्तकथा पिशाचनाथ के पास है। उसने पिशाचनाथ के साथ अपनी ऐयारी की चालें चलनी शुरू कर दीं। पिशाचनाथ उन्हीं में उलझ गया।''
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