लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4

देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''हालांकि, पिशाचनाथ ने हमें पहले ही बता दिया था कि यह सुरंग अनेक मोड़ों के साथ बहुत दूर तक चली गई है.. मगर फिर भी हमने यह कल्पना नहीं की थी कि वह इतनी लम्बी होगी। हम लगभग डेढ़ घड़ी तक उस सुरंग में चलते रहे.. इस बीच वह मोमबत्ती खत्म हो गई थी और हमें दूसरी जलानी पड़ी थी। किसी तरह राम-राम करते हुए वह सुरंग खत्म हुई। अब हमारे सामने सुरंग बन्द थी, किन्तु हम उसे खोलने की तरकीब बहुत अच्छी तरह जानते थे। हमने सुरंग की बन्द दीवार पर एक कील टटोली और उसे अन्दर की तरफ दबा दिया। अब हमारे सामने एक बहुत लम्बा-चौड़ा हाल था। इस हॉल की बहुत कुछ कैफियत पिशाचनाथ ने हमें बता दी थी, किन्तु फिर भी हम बहुत तक उस हॉल को देखते रह गए।

''हॉल चारों ओर से बन्द था.. उसकी छत किसी मन्दिर की छत की तरह ऊंची थी। चारों तरफ दीवारों पर अनेक तरह के हथियार लटक रहे थे। कुछ देर तक हम उस हॉल की कैफियत देखते रहे.. फिर हमारी नजर अपनी काम की चीज पर गई। रक्तकथा हमारी आंखों के सामने थी। लेकिन इतने अजीब ढंग से और सुरक्षा के साथ रखी गई थी.. कि कोई साधारण आदमी उसे अपनी आंखों के सामने देखते हुए भी हासिल नहीं कर सकता था।''

ध्यान से सुनिए.. अब हम आपको पिशाचनाथ के दिमाग का कमाल सुनाते हैं। अगर आपने ध्यान से सुना और उस पर गौर किया तो आपको पता लगेगा कि पिशाचनाथ ने कितने दिमाग से रक्तकथा कि हिफाजत का इन्तजाम किया था। सुनिए- ''हॉल के ठीक बीच में संगमरमर का एक वर्गाकार चबूतरा था जिसकी लम्बाई-चौड़ाई  छः-छ: गज से किसी तरह कम नहीं थी.. वह पांच गज ऊंचा था। उस चबूतरे के ठीक बीच में एक संगमरमर का बंदर खड़ा था। यानी स्थिति ये थी कि बंदर तक पहुंचने के लिए चबूतरे पर चढ़ना ताजमी था। चबूतरे के चारों ओर ऊपर चढ़ने के लिए दस-दस सीढ़ियां थीं। चबूतरे के ऊपर ठीक बीच में जो बंदर खडा था उसके हाथ में रक्तकथा का यह जड़ाऊ डब्बा था। संगमरमर के बंदर का यह हाथ इस तरह का बनाया गया था. मानो कोहनी पर से उसने थोड़ा मोड़ रखा हो। बंदर का बायां हाथ आगे को बढ़ा हुआ एकदम सीधा था। अत: इस हालत में दायां हाथ बाएं हाथ से पीछे था और उसके बाएं हाथ में एक चमचमाती हुई नंगी तलवार थी। अब शायद आप समझ गए होंगे कि दाएं यानी मुड़े हुए हाथ में रक्तकथा और बाहर को निकले बाएं ओर लम्बे हाथ में नंगी तलवार। इस तरह से बंदर के हाथ में दबी रक्तकथा हम आंखों के सामने देख रहे थे।

''हमें पिशाचनाथ ने सबकुछ बता दिया था, किन्तु फिर भी हम उसकी कथनी को आजमाना चाहते थे। उसने हमें बताया था कि साधरणतया कोई भी आदमी इस बंदर के हाथ में से रक्तकथा नहीं ले सकता। जो भी आदमी इस संगमरमर के बंदर से रक्तकथा लेने की कोशिश करेगा, यह बंदर उसकी हत्या कर देगा। बंदर किसी को अपने पास नहीं आने देगा। गुलशन ने वंदना इत्यादि को बताया।

''संगमरमर का बंदर हत्या कर देगा?' गणेशदत्त आश्चर्य के साथ बोला- 'यह भला कैसे हो सकता है?'

''जब तुम मेरी बात आगे सुनोगे तो सम्भव ही होगा।' गुलशन ने बताया- 'पिशाचनाथ की बात पर हमें भी यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए मैं खुद संगमरमर के उस चबूतरे की ओर बढ़ा.. मैंने अपना पैर पहली सीढ़ी पर रखा.. संगमरमर के बंदर में हल्की-सी हरकत हुई। दूसरी सीढ़ी पर रखा तो वह अपने स्थान पर ही खड़ा-खड़ा घूमने लगा। तीसरी सीढ़ी पर पैर रखते ही उसके घूमने की रफ्तार तेज हो गई। इस तरह ज्यों-ज्यों सीढ़ियां चढ़ता गया, बंदर के घूमने की रफ्तार और भी तेज होती चली गई। आखिर में, जब मैं नौवीं सीढ़ी पर था तो बंदर अपनी धुरी पर इतनी तेजी से घूम रहा था कि उसके चारों ओर उसके बाएं हाथ में दबी तलवार की चमक ही रह-रहकर मेरी आंखों में पड़ रही थी। वह इतनी तेजी से घूम रहा था कि रक्तकथा तो नजर भी नहीं आ रही थी। बहुत तेजी से घूमने के कारण बंदर का आकार भी समझ में नहीं आ रहा था। मैं बता चुका हूं कि बंदर के आगे निकले हुए हाथ में नंगी तलवार थी और तेजी से घूम रही थी। अब आप समझ सकते हैं कि बंदर के पास पहुंचा ही नहीं जा सकता था। ऐसा दुस्साहस करने वाले को बंदर की तलवार पहले ही काटकर फेंक देती और वह संगमरमर का बना हुआ करामाती बंदर इस तरह से रक्तकथा की हिफाजत कर रहा था।

''गुलशन के मुंह से इतना सुनकर सबके चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर आए।

''अब बोलो।' गुलशन गणेशदत्त से बोला- 'संगमरमर का बंदर हत्या कर सकता है या नहीं?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book