ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''नौवीं सीढ़ी से एक-एक सीढ़ी उतरता हुआ मैं वापस नीचे आ गया। ज्यों-ज्यों मैं नीचे उतरता जा रहा था, बंदर के घूमने की रफ्तार कम होती जा रही थी। जब मैं हॉल की जमीन पर आ गया तो तेज फिरकनी की तरह घूमता हुआ बंदर रुक गया। अब उसके हाथ में दबी हुई रक्तकथा भी साफ चमक रही थी। तलवार भी उसी तरह चमचमा रही थी... हम अजीब-सी नजरों से बंदर को देख रहे थे।
''अचानक मेरे दिमाग में एक तरकीब आई।' गुलशन जैसे ही सांस लेने के लिए रुका, भीमसिंह ने उससे आगे कहा- 'मैंने एकदम से कहा मेरे दिमाग में उस तरकीब से अलग एक तरकीब आई है... जो पिशाचनाथ बता चुका था।
नहीं! गुलशन ने मुझसे कहा... अब किसी तरकीब को आजमाने की कोशिश मत करो.. उसी तरकीब से निकालते हैं, जो हमें पिशाच बता चुका है। लेकिन मैंने गुलशन की यह बात नहीं मानी और आखिर में अपनी ही जिद मनवा ली। मैंने म्यान से अपनी तलवार निकाल ली और धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ी चबूतरे पर चढ़ गया। जब मैं नौवीं सीढ़ी पर पहुंचा तो बंदर अपनी अधिकतम रफ्तार से घूम रहा था। मैंने वहीं खड़े-खड़े अपना तलवार वाला हाथ आगे बढ़ाया.. एक भयानक झन्नाटे के साथ मेरी तलवार बंदर के हाथ में दबी, चारों ओर घूमती तलवार से टकराई। आग की चिंगारियां छिटक उठीं और मुझे इतना जबरदस्त झटका लगा कि मैं बिना सीढ़ियों से उतरे ही चबूतरे से नीचे आ गिरा, उसके बाद मेरी आंखों के सामने काला-सा पर्दा छा गया।'
''हम सब झपटकर भीमसिंह के करीब पहुंचे तो पाया कि यह बेहोश हो चुका था।' नाहरसिंह ने आगे बताया- 'हमने देखा कि हॉल की धरती पर एक तरफ भीमसिंह की टूटी हुई तलवार पड़ी थी और वह करामाती बंदर भी उसी तरह स्थिर हो था।'
''फिर मैंने बटुए से लखलखा निकाला और भीमसिंह को सुंघाकर होश में लाकर बैठाया।' नाहरसिंह से आगे बेनीसिंह बताने लगा- 'भीमसिंह होश में आने पर बोला... यह बंदर किसी को रक्तकथा तक नहीं पहुचने देगा।''
''तो फिर आपने बंदर के हाथ से यह रक्तकथा कैसे हासिल की?'' सवाल बेसब्री के साथ प्रगति ने किया।
''जरा आप सब सोचकर बताइए कि ऐसी हालत में उस बंदर से वह रक्तकथा कैसे हासिल की जा सकती है?'' गुलशन ने गौरवसिंह, गुरुवचनसिंह, अर्जुनसिंह, गणेशदत्त, केवलसिंह, महाकाल, शीला, वंदना और प्रगति इत्यादि पर आखें जमाकर कहा- ''क्या आप इस समय यह सोचकर बता सकते हैं कि ऐसे करामाती और कातिल बंदर से रक्तकथा कैसे ली जा सकती है... क्या कोई तरकीब दिमाग में आती है?''
प्रेरक पाठको... एक क्षण के लिए रुकिए। अगर आपने ध्यान से रक्तकथा की इस सुरक्षा के बारे में पढ़ा है तो जरूर समझ गए होंगे कि किसी भी वस्तु को हिफाजत से रखने का यह कैसा करामाती तरीका है? अब जरा आप भी अपने दिमाग से सोचें कि ऐसी सुरक्षा के बावजूद ऐसी कौन-सी तरकीब हो सकती है, जिससे रक्तकथा को हासिल किया जा सके? याद रखिये... चौथे भाग का यही सवाल है, जो आपसे पूछा जा रहा है। इस सवाल का जवाब ऐसा होना चाहिए, जो उस समय की परिस्थितियों से मेल खाए, जब की यह कहानी है। इतना हम जरूर बता सकते हैं कि जैसी टैक्नीक से यह बंदर वनाया गया है... वैसी ही टैक्नीक से भरा इसका जवाब भी होना चाहिए। हमारे कथानक की आगे की पंक्तियां जरा ध्यान से पढ़ें... शायद आपके दिमाग में इस सवाल का जवाब आ जाए।
''क्या किसी ढंग से बिना सीढ़ियों पर पैर रखे चबूतरे पर नहीं चढ़ा जा सकता?'' केवलसिंह ने पूछा।
''चबूतरे पर पैर रखते ही वह बंदर फिर उस ढंग से घूमने लगता है। भीमसिंह ने बताया।
''क्या कोई ऐसा तरीका नहीं हो सकता कि किसी तरह से बंदर के ठीक ऊपर हॉल की छत में से ही एक रस्सी लटकाई जाए और बिना चबूतरे पर पैर रखे ऊपर से ही रस्सी पर लटककर बंदर के हाथ से रक्तकथा ले ली जाए?'' गुरुवचनसिंह ने राय दी।
''जी नहीं, गुरुजी!'' गुलशन इस तरह से मुस्कराया मानो वह करामाती बंदर उसके ही दिमाग की ईजाद हो- ''इस तरह से इतना होगा कि बंदर घूमेगा नहीं, किन्तु जैसे ही बंदर के ऊपर रस्सी से लटका आदमी रक्तकथा को छुएगा, उसे झटका लगेगा और वह बेहोश हो जाएगा।''
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