ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
पाठक समझ गए होंगे कि अलफांसे को अपने पूर्व जन्म की हर बात याद आ गई है। बस... अब यहीं से आपको अलफांसे से सम्बन्धित एक बहुत ही दिलचस्प कथानक पढ़ने को मिलेगा। अब अलफांसे इस टापू पर अनजान नहीं बल्कि चप्पे-चप्पे से वाकिफ है। अब आगे के कथानक में यही अलफांसे शेरसिंह बनकर काम करेगा। अभी तक आपने देखा... अलफांसे को ऐरे-गैरे ऐयार भी चकरा थे, किन्तु अब अलफांसे को धोखा देना बहुत टेढ़ी खीर है। लेकिन क्या... यह गुरुवचनसिंह असली है? देखना यही है कि असल चक्कर क्या है! कहीं अलफांसे ही तो किसी तरह का नाटक नहीं कर है! खैर.. हम नहीं जानते कि असल चक्कर क्या है। जो होगा... देखा जाएगा।
''बहुत ही अच्छा हुआ जो तुम्हें सब कुछ याद आ गया।'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''आओ... अब यहां से उठो... किसी मुनासिब जगह चलकर आराम से बातें करेंगे।'' इस तरह से वे वहां से उठ गए। अलफांसे गुरुवचनसिंह के साथ-ही-साथ उस कोठरी से बाहर आ गया। इस समय वे एक सुरंग में थे। यहां पर कोई मशाल नहीं जल रही थी, इसलिए अन्धेरा था, गुरुवचनसिंह ने बटुए से निकालकर एक मोमबत्ती जलाई। अपनी क्षमतानुसार उसने सुरंग में रोशनी कर दी। इसी मोमबत्ती को हाथ में हुए गुरुवचनसिंह आगे और अलफांसे उनके पीछे चल दिया।
मोमबत्ती क्योंकि एक सीमित दायरे में ही रोशनी कर रही थी इसलिए बाकी सुरंग अन्धेरे में लिपटी हुई थी। और फिर वे लोग सुरंग के एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए, जहां से सुरंग चार दिशाओं में चली गई थी। दाएं-बाएं, सामने और चौथी दिशा वह थी, जिधर से वे दोनों इस वक्त आ ही रहे थे। वहां थोड़ी देर रूककर गुरुवचनसिंह ने कहा- ''देखो, ये दाईं ओर को जाने वाली सुरंग एक खाई में खुलती हैं। जाने वाले को अंधेरे के कारण नजर नहीं आता और वह खाई में गिरकर हमेशा के लिए दफन हो जाता है। तुम तो जानते ही हो कि इधर जाने वाला कभी वापस नहीं आता।'' कहते हुए गुरुवचनसिंह अलफांसे से तीन कदम आगे चलते हुए बाईं तरफ मुड़ गए। अभी सुरंग के मोड़ पर पहुंचने में अलफांसे को दो कदम और रखने थे कि अचानक उसके कन्धे पर किसी ने हाथ रखा। घोर अन्धेरे के कारण वह देख नहीं सका कि उसके पीछे कौन है। अभी वह कुछ बोलना ही चाहता था कि उसके कानों से आवाज टकराई- - ''कृपा करके एक लफ्ज भी जोर से मत बोलना मिस्टर अलफांसे!'' किसी औरत का बहुत ही महीन और मीठा स्वर था- ''आपको इस तरह बहकाकर लिए जाने वाला यह शख्स असली गुरुवचनसिंह बिल्कुल नहीं है। आप कृपया दो सायत के लिए मेरे साथ आकर बात सुन लें।''
एक बार तो अलफांसे का दिमाग घूम गया। फिर न जाने क्या सोचकर अलफांसे उस औरत के साथ चल दिया। वह औरत अलफांसे का हाथ अपने मुलायम हाथों में दबाए दाईं तरफ की सुरंग में बढ़ गई। कुछ दूर चलकर धीरे से बोली- ''इस शख्स ने आपसे जरूर कहा होगा कि यह सुरंग खाई की तरफ चली गई है, लेकिन आपको यह अभी मालूम हो जाएगा कि उसने आपसे बिल्कुल झूठ बोला था। असल बात ये है कि आप इधर न जाएं, इसीलिए वह आपको डराना चाहता था। क्योंकि अगर आप इधर जाते तो आप पर उसका भेद खुल जाता!'' इतनी बातें बताती-बताती वह अलफासे को सुरंग में काफी आगे निकाल ले गई थी।
''लेकिन तुम कौन हो?'' अलफांसे ने पूछा।
जवाब में चकमक द्वारा मोमबत्ती जलाई गई। रोशनी होते ही अलफांसे ने पास खड़ी औरत को देखा। वह औरत निहायत ही खूबसूरत थी।
''तुमने जवाब नहीं दिया... तुम कौन हो?''
''मेरा नाम शीला है। मैं गुरुवचनसिंह की एक ऐयार हूं। आपको उस दुष्ट से बचाना चाहती हूं!''
''तुमने अभी-अभी कहा था कि वह जो मुझे ले जा रहा था गुरुवचनसिंह नहीं है..! फिर वह कौन है...?''
'आप यकीन कीजिए कि मैं जो कुछ कह रही हूं बिल्कुल ठीक कह रही हूं।'' वह औरत, जिसने अपना नाम शीला बताया था बोली- ''अभी नहीं तो आपको मेरी और दो-चार बातें सुनकर यकीन आ जाएगा। लेकिन उसके लिए मुझे इतना करना होगा कि ये मोमबत्ती बुझानी होगी और इस सुरंग में अधेरे में ही चलते हुए आपको बातें सुननी होंगी। हो सकता है कि इस वक्त आपको मेरी बातों पर यकीन न आए लेकिन मैं सच्ची हूं।''
''सच्ची हो तो मोमबत्ती क्यों बुझाना चाहती हो?''
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