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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''इसलिए क्योंकि उस दुष्ट की ताकत बहुत है, जो यहां पर गुरुवचनसिंह बनकर बैठ गया है।'' शीला ने बताया- ''अगर हम रोशनी करेंगे तो वह हमें जल्दी ढूंढ़ लेगा और मैं आपको उस बदकार से बचा न पाऊंगी।''

ऐसे विकट समय में अलफांसे निश्चय नहीं कर पा रहा था कि गुरुवचनसिंह को सच्चा माने या इस अनजान लड़की को। वैसे तो गुरुवचनसिंह की सारी बातें सच्ची थीं... लेकिन अंत में उसने झूठ बोला था। उसने कहा था... देखो-दाईं ओर को जाने वाली सुरंग सीधी खाई में खुलती है।

अलफांसे को क्योंकि सारी बातें याद आ गई थीं... इसलिए जानता था कि गुरुवचनसिंह का यह कहना बिल्कुल झूठ था। अलफांसे यह जानता था कि यह सुरंग किसी भी खाई में नहीं खुलती। फिर--गुरुवचनसिंह ने झूठ क्यों बोला?

इसका मतलब... उसके दिल में किसी तरह का मैल है...। और गुरुवचनसिंह के इस झूठ ने ही अलफांसे को लड़की की बातें सुनने के मजबूर कर दिया था। लड़की का कहना था कि इधर खाई नहीं है--जो सच था। उसने यह भी कहा था कि जिसके साथ वह था... वह असली गुरुवचनसिंह नहीं है। खैर.. अलफांसे ने सोचा... देखें ये लड़की क्या बात करती है? ये सोचकर उसने कहा- ''मोमबत्ती बुझा दो।'

शीला ने फौरन ऐसा ही किया और अन्धेरे में उसका हाथ पकड़कर आगे बढ़ती हुई बोली- ''इसने गुरुवचनसिंह को कैद में डाल रखा है। यह आज से कोई छ: महीने पहले यहां आया था। इसका असली नाम सिंगही है।''

''सिंगही!'' अलफांसे उछल पड़ा।

खैर.. .छोड़िए... अब हमारे पास इतनी जगह नहीं है कि हम शीला और अलफांसे के बारे में ज्यादा कुछ लिख सकें। चौथा भाग अब पूरा होने जा रहा है... जबकि हम पाठकों को एक और अजीब तरद्दुद से वाकिफ कराना चाहते हैं।

जब गुरुवचनसिंह दस-बारह कदम आगे निकल गए... फिर भी पीछे से अलफांसे ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। इस वक्त पीछे से अलफांसे के कदमों की आहट भी नहीं आ रही थी। ऐसा आभास पाकर वे हल्के से चौंके और मोमबत्ती सहित पीछे पलट गए, किन्तु यह देखकर वे भौचक्के रह गए कि रोशनी के दायरे में कहीं भी अलफांसे नजर नहीं आया।

''शेरसिंह... शेरसिंह...!'' उन्होंने कई बार जोर-जोर से पुकारा। मगर जवाब में किसी तरह की आवाज उन्हें सुनाई न दी। वे मोमबत्ती हाथ में लिये और आवाज देते हुए सुरंग में इधर-उधर घूमने लगे। ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उन्हें तीस सायत हो गए, मगर उन्हें कोई नहीं मिला। मुख्तसर ये कि वे अलफांसे के इस तरह गायब होने से बुरी तरह. परेशान थे...। अंत में फिर उन्हें दाईं तरफ की सुरंग के मोड़ पर से एक कागज मिला...जिसमें लिखा था-

प्यारे गुरुवचनसिंह

अभी-अभी एक ऐयार टकराया है, जिसकी सूरत ठीक तुम जैसी है और ये अपना नाम गुरुवचनसिंह बताता है। इसका कहना है कि तुम नकली गुरुवचनसिंह हो और मझे धोखा देना चाहते हो। लेकिन मैं बखूबी जानता हूं कि धोखेबाज यही है। मैं अच्छी तरह से समझ हूं कि यह दलीपसिंह का ऐयार है और मुझे एक बार फिर धोखा देना चाहता है... लेकिन इस बार मैं इन्हें ऐसा मजा चखाऊंगा कि ये सारी जिन्दगी याद रखेंगे। मैं जानता हूं कि मेरा और फूलवती का हत्यारा सुरेंद्रसिंह अभी तक जिंदा है... तुम चिन्ता मत करना। अब मैं सुरेद्रसिंह का सिर लेकर ही तुमसे मिलूंगा। ये लोग अलफांसे को बहका लेते थे.. किन्तु शेरसिंह को नहीं बहका सकते।

तुम्हारा दोस्त-शेरसिंह।

गुरुवचनसिह का हाथ अपने चेहरे की ओर बढ़ा!

 

० ० ०

... आगे जानने के लिए भाग-5 पढ़ें

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