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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

महेश बोले- हरे! तुम मेरी आज्ञा से सम्पूर्ण लोकों के कर्ता, पालक और संहारक होओ। धर्म, अर्थ और काम के दाता तथा दुर्नीति अथवा अन्याय करनेवाले दुष्टों को दण्ड देनेवाले होओ; महान् बल-पराक्रम से सम्पन्न, जगत्पूज्य जगदीश्वर बने रहो। समरांगण में तुम कहीं भी जीते नहीं जा सकोगे। मुझसे भी तुम कभी पराजित नहीं होओगे। तुम मुझसे मेरी दी हुई तीन प्रकार की शक्तियों ग्रहण करो। एक तो इच्छा आदि की सिद्धि, दूसरी नाना प्रकार की लीलाओं को प्रकट करने की शक्ति और तीसरी तीनों लोकों में नित्य स्वतन्त्रता। हरे! जो तुमसे द्वेष करनेवाले हैं, वे निश्चय ही मेरे द्वारा प्रयत्नपूर्वक दण्डनीय होंगे। विष्णो! मैं तुम्हारे भक्तों को उत्तम मोक्ष प्रदान करूँगा। तुम इस माया को भी ग्रहण करो, जिसका निवारण करना देवता आदि के लिये भी कठिन है तथा जिससे मोहित होने पर यह विश्व जडरूप हो जायगा। हरे! तुम मेरी बायीं भुजा हो और विधाता दाहिनी भुजा हैं। तुम इन विधाता के भी उत्पादक और पालक होओगे। मेरा हृदयरूप जो रुद्र है वही मैं हूँ - इसमें संशय नहीं है। वह रुद्र तुम्हारा और ब्रह्मा आदि देवताओं का भी निश्चय ही पूज्य है। तुम यहाँ रहकर विशेषरूप से सम्पूर्ण जगत् का पालन करो। नाना प्रकार की लीलाएँ करने वाले विभिन्न अवतारों द्वारा सदा सबकी रक्षा करते रहो। मेरे चिन्मय धाम में तुम्हारा जो यह परम वैभवशाली और अत्यन्त उज्ज्वल स्थान है वह गोलोक नामसे विख्यात होगा। हरे! भूतलपर जो तुम्हारे अवतार होंगे, वे सबके रक्षक और मेरे भक्त होंगे। मैं उनका अवश्य दर्शन करूँगा। वे मेरे वर से सदा प्रसन्न रहेंगे।

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