ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
यह मृतसंजीवनी मन्त्र है जो मेरे मतसे सर्वोत्तम है। तुम प्रेमपूर्वक नियमसे भगवान् शिवका स्मरण करते हुए इस मन्त्र का जप करो। जप और हवन के पश्चात् इसी से अभिमन्त्रित किये हुए जल को दिन और रात में पीओ तथा शिव-विग्रह के समीप बैठकर उन्हीं का ध्यान करते रहो। इससे कहीं भी मृत्यु का भय नहीं रहता। न्यास आदि सब कार्य करके विधिवत् भगवान् शिव की पूजा करो। यह सब करके शान्तभाव से बैठकर भक्तवत्सल शंकर का ध्यान करना चाहिये। मैं भगवान् शिव का ध्यान बता रहा हूँ, जिसके अनुसार उनका चिन्तन करके मन्त्र-जप करना चाहिये। इस तरह निरन्तर जप करने से बुद्धिमान् पुरुष भगवान् शिव के प्रभाव से उस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है।
मृत्युंजय का ध्यान
हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्धृत्य तोयं शिर:
सिज्वन्तं करयोयुगेन दधतं स्वाङ्के सकुम्भौ करौ।
अक्षस्रङ् मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रवत्
पीयूषार्द्रतनुं भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयम्।।
जो अपने दो करकमलों में रखे हुए दो कलशों से जल निकालकर उनसे ऊपरवाले दो हाथों द्वारा अपने मस्तक को सींचते हैं। अन्य दो हाथों में दो घड़े लिये उन्हें अपनी गोद में रखे हुए हैं तथा शेष दो हाथों में रुद्राक्ष एवं मृगमुद्रा धारण करते हैं कमल के आसनपर बैठे हैं सिरपर स्थित चन्द्रमा से निरन्तर झरते हुए अमृत से जिनका सारा शरीर भीगा हुआ है तथा जो तीन नेत्र धारण करनेवाले हैं, उन भगवान् मृत्युंजय का, जिनके साथ गिरिराजनन्दिनी उमा भी विराजमान हैं, मैं भजन (चिन्तन) करता हूँ।
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