ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ब्रह्माजी कहते हैं- तात! मुनिश्रेष्ठ दधीचि को इस प्रकार उपदेश देकर शुक्राचार्य भगवान् शंकर का स्मरण करते हुए अपने स्थान को लौट गये। उनकी वह बात सुनकर महामुनि दधीचि बड़े प्रेम से शिवजी का स्मरण करते हुए तपस्या के लिये बन में गये। वहाँ जाकर उन्होंने विधि-पूर्वक महामृत्युंजय-मन्त्र का जप और प्रेम-पूर्वक भगवान् शिव का चिन्तन करते हुए तपस्या प्रारम्भ की। दीर्घकालतक उस मन्त्र का जप और तपस्या द्वारा भगवान् शंकर की आराधना करके दधीचि ने महामृत्युंजय शिव को संतुष्ट किया। महामुने! उस जप से प्रसन्नचित्त हुए भक्तवत्सल भगवान् शिव दधीचि के प्रेमवश उनके सामने प्रकट हो गये। अपने प्रभु शम्भु का साक्षात् दर्शन करके मुनीश्वर दधीचि को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने विधिपूर्वक प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़ भक्तिभाव से शंकर का स्तवन किया। तात! मुने। तदनन्तर मुनि के प्रेम से प्रसन्न हुए शिव ने च्यवनकुमार दधीचि से कहा- '' तुम वर माँगो।' भगवान् शिव का यह वचन सुनकर भक्तशिरोमणि दधीचि दोनों हाथ जोड़ नतमस्तक हो भक्तवत्सल शंकर से बोले।
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