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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

गिरिराज ने कहा- प्रिये! पिछली रात में मैंने भी एक स्वप्न देखा है। मैं आदरपूर्वक उसे बताता हूँ। तुम प्रेमपूर्वक उसे सुनो। एक बड़े उत्तम तपस्वी थे। नारदजी ने वर के जैसे लक्षण बताये थे, उन्हीं लक्षणों से युक्त शरीर को उन्होंने धारण कर रखा था। वे बड़ी प्रसन्नता के साथ मेरे नगर के निकट तपस्या करने के लिये आये। उन्हें देखकर मुझे बड़ा हर्ष हुआ और मैं अपनी पुत्री को साथ लेकर उनके पास गया। उस समय मुझे ज्ञात हुआ कि नारदजी के बताये हुए वर भगवान् शम्भु ये ही हैं। तब मैंने उन तपस्वी की सेवा के लिये अपनी पुत्री को उपदेश देकर उनसे भी प्रार्थना की कि वे इसकी सेवा स्वीकार करें। परंतु उस समय उन्होंने मेरी बात नहीं मानी, इतने में ही वहाँ सांख्य और वेदान्त के अनुसार बहुत बड़ा विवाद छिड़ गया। तदनन्तर उनकी आज्ञा से मेरी बेटी वहीं रह गयी और अपने हृदय में उन्हीं की कामना रखकर भक्तिपूर्वक उनकी सेवा करने लगी। सुमुखि! यही मेरा देखा हुआ स्वप्न है जिसे मैंने तुम्हें बता दिया। अत: प्रिये मेने! कुछ कालतक इस स्वप्न के फल की परीक्षा या प्रतीक्षा करनी चाहिये, इस समय यही उचित जान पड़ता है। तुम निश्चित समझो, यही मेरा विचार है।

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