ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ब्रह्माजी कहते हैं- मुनीश्वर नारद। ऐसा कहकर गिरिराज हिमवान् और मेनका शुद्ध हृदय से उस स्वप्न के फल की परीक्षा एवं प्रतीक्षा करने लगे।
देवर्षे! शिवभक्तशिरोमणे! भगवान् शंकर का यश परम पावन, मंगलकारी, भक्तिवर्धक और उत्तम है। तुम इसे आदरपूर्वक सुनो। दक्ष-यज्ञ से अपने निवासस्थान कैलास पर्वतपर आकर भगवान् शम्भु प्रियाविरह से कातर हो गये और प्राणों से भी अधिक प्यारी सतीदेवी का हृदय से चिन्तन करने लगे। अपने पार्षदों को बुलाकर सती के लिये शोक करते हुए उनके प्रेमवर्द्धक गुणों का अत्यन्त प्रीतिपूर्वक वर्णन करने लगे। यह सब उन्होंने सांसारिक गति को दिखाने के लिये किया। फिर, गृहस्थ-आश्रम की सुन्दर स्थिति तथा नीति-रीति का परित्याग करके वे दिगम्बर हो गये और सब लोकों में उन्मत्त की भांति भ्रमण करने लगे। लीलाकुशल होने के कारण विरही की अवस्था का प्रदर्शन करने लगे। सती के विरह से दुःखित हो कहीं भी उनका दर्शन न पाकर भक्तकल्याणकारी भगवान् शंकर पुन कैलासगिरि पर लौट आये और मन को यत्नपूर्वक एकाग्र करके उन्होंने समाधि लगा ली, जो समस्त दुःखों का नाश करनेवाली है। समाधि में वे अविनाशी स्वरूप का दर्शन करने लगे। इस तरह तीनों गुणों से रहित हो वे भगवान् शिव चिरकाल तक सुस्थिरभाव से समाधि लगाये बैठे रहे। वे प्रभु स्वयं ही माया के अधिपति निर्विकार परब्रह्म हैं। तदनन्तर जब असंख्य वर्ष व्यतीत हो गये, तब उन्होंने समाधि छोड़ी। उसके बाद तुरंत ही जो चरित्र हुआ, उसे मैं तुम्हें बताता हूँ। भगवान् शिव के ललाट से उस समय श्रमजनित पसीने की एक बूँद पृथ्वीपर गिरी और तत्काल एक शिशु के रूप में परिणत हो गयी। मुने! उस बालक के चार भुजाएँ थीं, शरीर की कान्ति लाल थी और आकार मनोहर था। दिव्य द्युति से दीप्तिमान् वह शोभाशाली बालक अत्यन्त दुस्सह तेज से सम्पन्न था, तथापि उस समय लोकाचार-परायण परमेश्वर शिव के आगे वह साधारण शिशु की भाँति रोने लगा। यह देख पृथ्वी भगवान् शंकर से भय मान उत्तम बुद्धि से विचार करने के पश्चात् सुन्दरी स्त्री का रूप धारण करके वहीं प्रकट हो गयीं। उन्होंने उस सुन्दर बालक को तुरंत उठाकर अपनी गोद में रख लिया और अपने ऊपर प्रकट होनेवाले दूध को ही स्तन्य के रूप में उसे पिलाने लगीं। उन्होंने स्नेह से उसका मुँह चूमा और अपना ही बालक मान हँस-हँसकर उसे खेलाने लगीं। परमेश्वर शिव का हितसाधन करनेवाली पृथ्वी देवी सच्चे भाव से स्वयं उसकी माता बन गयीं।
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