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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ब्रह्माजी कहते हैं- मुने। तुम्हारी यह बात सुनकर गिरिराजकुमारी काली कुछ उल्लसित हो तुमसे हाथ जोड़ प्रसन्नता-पूर्वक बोलीं।

शिवा ने कहा- प्रभो! आप सर्वज्ञ तथा जगत् का उपकार करने वाले हैं। मुने। मुझे रुद्रदेव की आराधना के लिये कोई मन्त्र दीजिये।

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! पार्वती का यह वचन सुनकर तुमने पंचाक्षर शिवमन्त्र  (नम: शिवाय ) का उन्हें विधिपूर्वक उपदेश किया। साथ ही उस मन्त्रराज में श्रद्धा उत्पन्न करने के लिये तुमने उसका सबसे अधिक प्रभाव बताया।

नारद (तुम) बोले- देवि! इस मन्त्र का परम अद्भुत प्रभाव सुनो। इसके श्रवणमात्र से भगवान् शंकर प्रसन्न हो जाते हैं। यह मन्त्र सब मन्त्रों का राजा और मनोवांछित फल को देनेवाला है। भगवान् शंकर को बहुत ही प्रिय है तथा साधक को भोग और मोक्ष देने में समर्थ है। सौभाग्यशालिनि! इस मन्त्र का विधिपूर्वक जप करने से तुम्हारे द्वारा आराधित हुए भगवान् शिव अवश्य और शीघ्र तुम्हारी आँखों के सामने प्रकट हो जायँगे। शिवे! शौच-संतोषादि नियमों में तत्पर रहकर भगवान् शिव के स्वरूप का चिन्तन करती हुई तुम पंचाक्षर-मन्त्र का जप करो। इससे आराध्यदेव शिव शीघ्र ही संतुष्ट होंगे। साध्वी! इस तरह तपस्या करो। तपस्या से महेश्वर वश में हो सकते हैं। तपस्या से ही सबको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है अन्यथा नहीं।

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! तुम भगवान् शिव के प्रिय भक्त और इच्छानुसार विचरनेवाले हो। तुमने काली से उपर्युक्त बात कहकर देवताओं के हित में तत्पर हो स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। तुम्हारी बात सुनकर उस समय पार्वती बहुत प्रसन्न हुईं। उन्हें परम उत्तम पंचाक्षर-मन्त्र प्राप्त हो गया था।  

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