ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
बुद्धिमान् देवर्षे! तदनन्तर एक दिन इन्द्र की प्रेरणा से इच्छानुसार घूमते हुए तुम हिमालय पर्वत पर आये। उस समय महात्मा हिमवान् ने तुम्हारा स्वागत-सत्कार किया और कुशल-मंगल पूछा। फिर तुम उनके दिये हुए उत्तम आसन पर बैठे। तदनन्तर शैलराज ने अपनी कन्या के चरित्र का आरम्भ से ही वर्णन किया। किस तरह उसने महादेवजी की सेवा आरम्भ की और किस तरह उनके द्वारा कामदेव का दहन हुआ - यह सब कुछ बताया। मुने! यह सब सुनकर तुमने गिरिराज से कहा- 'शैलेश्वर! भगवान् शिव का भजन करो।' फिर उनसे विदा लेकर तुम उठे और मन-ही-मन शिव का स्मरण करके शैलराज को छोड़ शीघ्र ही एकान्त में काली के पास आ गये। मुने! तुम लोकोपकारी, ज्ञानी तथा शिव के प्रिय भक्त हो; समस्त ज्ञानवानों के शिरोमणि हो, अत: काली के पास आ उसे सम्बोधित करके उसी के हित में स्थित हो उससे सादर यह सत्य वचन बोले।
नारदजी ने (तुमने ) कहा- कालिके! तुम मेरी बात सुनो। मैं दयावश सच्ची बात कह रहा हूँ। मेरा वचन तुम्हारे लिये सर्वथा हितकर निर्दोष तथा उत्तम काम्य वस्तुओंको देनेवाला होगा। तुमने यहाँ महादेवजी की सेवा अवश्य की थी, परंतु वह बिना तपस्या के गर्वयुक्त होकर की थी। दीनों पर अनुग्रह करनेवाले शिव ने तुम्हारे उसी गर्व को नष्ट किया है। शिवे! तुम्हारे स्वामी महेश्वर विरक्त और महायोगी हैं। उन्होंने केवल कामदेव को जलाकर जो तुम्हें सकुशल छोड़ दिया है उसमें यही कारण है कि वे भगवान् भक्तवत्सल हैं। अत: तुम उत्तम तपस्या में संलग्न हो चिरकालतक महेश्वर की आराधना करो। तपस्या से तुम्हारा संस्कार हो जाने पर रुद्रदेव तुम्हें अपनी सहधर्मिणी बनायेंगे और तुम भी कभी उन कल्याणकारी शम्भु का परित्याग नहीं करोगी। देवि। तुम हठपूर्वक शिव को अपनाने का यत्न करो। शिव के सिवा दूसरे किसी को अपना पति स्वीकार न करना।
|