ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
तात! अब मैं तुम्हें समस्त मनोवांछित कामनाओं की सिद्धि के लिये उन पूजा-सम्बन्धी मन्त्रों को भी संक्षेप से बता रहा हूँ, सावधानी के साथ सुनो। पावमानमन्त्रसे, 'वाङ्मे' इत्यादि मन्त्र से, रुद्रमन्त्र तथा नीलरुद्रमन्त्र से, सुन्दर एवं शुभ पुरुषसूक्त से, श्रीसूक्त से, सुन्दर अथर्वशीर्ष के मन्त्र से, 'आ नो भद्रा०' इत्यादि शान्ति मंत्र से, शान्तिसम्बन्धी दूसरे मन्त्रों से, भारुण्डमन्त्र और अरुण मन्त्रों से, अर्थाभीष्टसाम तथा देवव्रतसाम से, 'अभि त्वा०' इत्यादि रथन्तरसाम से, पुरुषसूक्त से, मृत्युंजयमन्त्र से तथा पंचाक्षरमन्त्र से पूजा करे। एक सहस्र अथवा एक सौ एक जलधाराएँ गिराने की व्यवस्था करे। यह सब वेदमार्ग से अथवा नाममन्त्रों से करना चाहिये। तदनन्तर भगवान् शंकरके ऊपर चन्दन और फूल आदि चढ़ाये। प्रणव से ही मुखवास (ताम्बूल) आदि अर्पित करे। इसके बाद जो स्फटिकमणि के समान निर्मल, निष्कल, अविनाशी, सर्वलोक कारण, सर्वलोकमय परमदेव हैं; जो ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र और विष्णु आदि देवताओं की भी दृष्टि में नहीं आते; वेदवेत्ता विद्वानों ने जिन्हें वेदान्त में मन-वाणी के अगोचर बताया है; जो आदि, मध्य और अन्त से रहित तथा समस्त रोगियों के लिये औषधरूप हैं; जिनकी शिवतत्त्व के नाम से ख्याति है तथा जो शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं उन भगवान् शिव का शिवलिंग के मस्तक पर प्रणवमन्त्र से ही पूजन करे। धूप, दीप, नैवेद्य, सुन्दर ताम्बूल एवं सुरम्य आरती द्वारा यथोक्त विधि से पूजा करके स्तोत्रों तथा अन्य नाना प्रकार के मन्त्रों द्वारा उन्हें नमस्कार करे। फिर अर्ध्य देकर भगवान् के चरणों में फूल बिखेरे और साष्टांग प्रणाम करके देवेश्वर शिव की आराधना करे। फिर हाथ में फूल लेकर खड़ा हो जाय और दोनों हाथ जोड़कर निम्नांकित मन्त्र से सर्वेश्वर शंकर की पुन: प्रार्थना करे-
अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानाज्जपपूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपया तव शंकर।।
कल्याणकारी शिव! मैंने अनजान में अथवा जान-बूझकर जो जप-पूजा आदि सत्कर्म किये हों, वे आपकी कृपा से सफल हों।
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