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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


अध्याय २९

भगवान् शिव के कृष्णदर्शन नामक अवतार की कथा

नन्दीश्वर कहते हैं- सनत्कुमारजी! भगवान् शम्भु के एक उत्तम अवतार का नाम कृष्णदर्शन है? जिसने राजा नभग को ज्ञान प्रदान किया था। उसका वर्णन करता हूँ, सुनो। श्राद्धदेव नामक मनु के जो इक्ष्वाकु आदि पुत्र थे, उनमें नवम का नाम नभग था, जिनका पुत्र नाभाग नाम से प्रसिद्ध हुआ। नाभाग के ही पुत्र अम्बरीष हुए, जो भगवान् विष्णु के भक्त थे तथा जिनकी ब्राह्मणभक्ति देखकर उनके ऊपर महर्षि दुर्वासा प्रसन्न हुए थे। मुने ! अम्बरीष के पितामह जो नभग कहे गये है उनके चरित्र का वर्णन सुनो। उन्हीं को भगवान् शिव ने ज्ञान प्रदान किया था। मनुपुत्र नभग बड़े बुद्धिमान् थे। उन्होंने विद्याध्ययन के लिये दीर्घकालतक इन्द्रिय-संयमपूर्वक गुरुकुल में निवास किया। इसी बीच में इक्ष्वाकु आदि भाइयों ने नभग के लिये कोई भाग न देकर पिता की सम्पत्ति आपस में बाँट ली और अपना-अपना भाग लेकर वे उत्तम रीति से राज्य का पालन करने लगे। उन सबने पिता की आज्ञा से ही धन का बँटवारा किया था। कुछ काल के पश्चात् ब्रह्मचारी नभग गुरुकुल से सांगोपांग वेदों का अध्ययन करके वहाँ आये। उन्होंने देखा सब भाई सारी सम्पत्ति का बँटवारा करके अपना-अपना भाग ले चुके हैं। तब उन्होंने भी बड़े स्नेह से दायभाग पाने की इच्छा रखकर अपने इक्ष्वाकु आदि बन्दुओं से कहा- 'भाइयो! मेरे लिये भाग दिये बिना ही आपलोगों ने आपस में सारी सम्पत्ति का बँटवारा कर लिया। अत: अब प्रसन्नता-पूर्वक मुझे भी हिस्सा दीजिये। मैं अपना दायभाग लेने के लिये ही यहाँ आया हूँ।' भाई बोले-जब सम्पत्ति का बँटवारा हो रहा था, उस समय हम तुम्हारे लिये भाग देना भूल गये थे। अब इस समय पिताजी को ही तुम्हारे हिस्से में देते हैं। तुम उन्हीं को ले लो, इसमें संशय नहीं है।

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