गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
भाइयों का यह वचन सुनकर नभग को बड़ा विस्मय हुआ। वे पिता के पास जाकर बोले- 'तात! मैं विद्याध्ययन के लिये गुरुकुल में गया था और वहाँ अबतक ब्रह्मचारी रहा हूँ। इसी बीच में भाइयों ने मुझे छोड़कर आपस में धन का बँटवारा कर लिया। वहाँ से लौटकर जब मैंने अपने हिस्से के बारे में उनसे पूछा, तब उन्होंने आपको मेरा हिस्सा बता दिया। अत: उसके लिये मैं आपकी सेवा में आया हूँ।' नभग की वह बात सुनकर पिता को बड़ा विस्मय हुआ। श्राद्धदेव ने पुत्र को आश्वासन देते हुए कहा- 'बेटा! भाइयों की उस बातपर विश्वास न करो। वह उन्होंने तुम्हें ठगने के लिये कही है। मैं तुम्हारे लिये भोगसाधक उत्तम दाय नहीं बन सकता, तथापि उन वंचकों ने यदि मुझे ही दाय के रूप में तुम्हें दिया है तो मैं तुम्हारी जीविका का एक उपाय बताता हूँ, सुनो। इन दिनों उत्तम बुद्धिवाले आंगिरस गोत्रीय ब्राह्मण एक बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे है उस कर्ममें प्रत्येक छठे दिन का कार्य वे ठीक-ठीक नहीं समझ पाते-उसमें उनसे भूल हो जाती है। तुम वहाँ जाओ और उन ब्राह्मणों को विश्वेदेव सम्बन्धी दो सूक्त बतला दिया करो। इससे वह यह शुद्धरूप से सम्पादित होगा। वह यज्ञ समाप्त होने पर वे ब्राह्मण जब स्वर्ग को जाने लगेंगे, उस समय संतुष्ट होकर अपने यज्ञ से बचा हुआ सारा धन तुम्हें दे देंगे।'
पिता की यह बात सुनकर सत्यवादी नभग बड़ी प्रसन्नता के साथ उस उत्तम यज्ञ में गये। मुने! वहाँ छठे दिन के कर्म में बुद्धिमान् मनुपुत्र ने वैश्वदेव सम्बन्धी दोनों सूक्तों का स्पष्ट रूप से उच्चारण किया। यज्ञकर्म समाप्त होने पर वे आंगिरस ब्राह्मण यज्ञ से बचा हुआ अपना-अपना धन नभग को देकर स्वर्गलोक को चले गये। उस यज्ञशिष्ट धन को जब ये ग्रहण करने लगे, उस समय सुन्दर लीला करनेवाले भगवान् शिव तत्काल वहाँ प्रकट हो गये। उनके सारे अंग बड़े सुन्दर थे, परंतु नेत्र काले थे। उन्होंने नभग से पूछा- 'तुम कौन हो? जो इस धन को ले रहे हो। यह तो मेरी सम्पत्ति है। तुम्हें किसने यहाँ भेजा है। सब बातें ठीक-ठीक बताओ।'
नभग ने कहा- यह तो यज्ञ से बचा हुआ धन है जिसे ऋषियों ने मुझे दिया है। अब यह मेरी ही सम्पत्ति है। इसको लेने से तुम मुझे कैसे रोक रहे हो?
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