गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
इतने में सूअर की गुर्राहट का शब्द दसों दिशाओं में गूँज उठा। उस शब्द से पर्वत आदि सभी जड़ पदार्थ झन्ना उठे। तब उस वनेचर के शब्द से घबराकर अर्जुन सोचने लगे- 'अहो! क्या ये भगवान् शिव तो नहीं है जो यहाँ शुभ करने के लिये पधारे हैं; क्योंकि मैंने पहले से ही ऐसा सुन रखा है। पुन: श्रीकृष्ण और व्यासजी ने भी ऐसा ही कहा है तथा देवताओं ने भी बारंबार स्मरण करके ऐसी ही घोषणा की है कि शिवजी कल्याणकर्ता और सुखदाता हैं। वे मुक्ति प्रदान करने के कारण मुक्तिदाता कहे जाते हैं। उनका नाम स्मरण करने से मनुष्यों का निश्चय ही कल्याण होता है। जो लोग सर्वभाव से उनका भजन करते हैं, उन्हें स्वप्न में भी दुःख का दर्शन नहीं होता। यदि कदाचित् कुछ दुःख आ ही जाता है तो उसे कर्मजनित समझना चाहिये। सो भी बहुत की आशंका होने पर भी थोड़ा होता है। अथवा उसे विशेषरूप से प्रारब्ध का ही दोष मानना चाहिये। अथवा कभी-कभी भगवान् शंकर अपनी इच्छा से थोड़ा या अधिक दुःख भुगताकर फिर निस्संदेह उसे दूर कर देते हैं। वे विष को अमृत और अमृत को विष बना देते हैं। यों जैसी उनकी इच्छा होती है वैसा वे करते हैं। भला, उन समर्थ को कौन मना कर सकता है। अन्यान्य प्राचीन भक्तों की भी ऐसी ही धारणा थी, अत: भावी भक्तों को सदा इसी विचार पर अपने मन को स्थिर रखना चाहिये। लक्ष्मी रहे अथवा चली जाय, मृत्यु आँखों के सामने ही क्यों न उपस्थित हो जाय, लोग निन्दा करें अथवा प्रशंसा; परंतु शिवभक्ति से दुःखों का विनाश होता ही है। शंकर अपने भक्तों को, चाहे वे पापी हों या पुण्यात्मा, सदा सुख देते हैं। यदि कभी वे परीक्षा के लिये भक्त को कष्ट में डाल देते हैं तो अन्त में दयालुस्वभाव होने के कारण वे ही उसके सुखदाता भी होते हैं। फिर तो वह भक्त उसी प्रकार निर्मल हो जाता है जैसे आग में तपाया हुआ सोना शुद्ध हो जाता है।
इसी तरह की बातें मैंने पहले भी मुनियों के मुख से सुन रखी हैं; अत: मैं शिवजी का भजन करके उसी से उत्तम सुख प्राप्त करूँगा।'
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