गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अर्जुन यों विचार कर ही रहे थे, तब तक बाण का लक्ष्यभूत वह सूअर वहाँ आ पहुँचा। उधर शिवजी भी उस सूअर के पीछे लगे हुए दीख पड़े। उस समय उन दोनों के मध्य में वह शूकर अद्भुत शिखर-सा दीख रहा था। उसकी बड़ी महिमा भी कही गयी है। तब भक्तवत्सल भगवान् शंकर अर्जुन की रक्षा के लिये बड़े वेग से आगे बड़े। इसी समय उन दोनों ने उस शूकरपर बाण चलाया। शिवजी के बाण का लक्ष्य उसका पुच्छभाग था और अर्जुन ने उसके मुख को अपना निशाना बनाया था। शिवजी का बाण उसके पुच्छभाग से प्रवेश करके मुख के रास्ते निकल गया और शीघ्र ही भूमि में विलीन हो गया। तथा अर्जुन का बाण उसके पिछले भाग से निकलकर बगल में ही गिर पड़ा। तब वह शूकररूपधारी दैत्य उसी क्षण मरकर भूतल पर गिर पड़ा। उस समय देवताओं को महान् हर्ष प्राप्त हुआ। उन्होंने पहले तो जय-जयकार करते हुए पुष्पों की वृष्टि की, फिर वे बारंबार नमस्कार करके स्तुति करने लगे। उस समय उन दोनों ने दैत्य के उस कूर रूप की ओर दृष्टिपात किया। उसे देखकर शिवजी का मन संतुष्ट हो गया और अर्जुन को महान् सुख प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् अर्जुन मन-ही-मन विशेषरूप से सुख का अनुभव करते हुए कहने लगे- 'अहो! यह श्रेष्ठ दैत्य परम अद्भुत रूप धारण करके मुझे मारने के लिये ही आया था, परंतु शिवजी ने ही मेरी रक्षा की है। निस्संदेह उन परमेश्वर ने ही आज (इसे मारने के लिये) मेरी बुद्धि को प्रेरित किया है।' ऐसा विचारकर अर्जुन ने शिवनामसंकीर्तन किया और फिर बारंबार उनके चरणों में प्रणाम करके उनकी स्तुति की।
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