गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
उन्हीं दिनों उस श्रेष्ठ नगर में कोई ग्वालिन रहती थी, जिसके एकमात्र पुत्र था। वह विधवा थी और उज्जयिनी में बहुत दिनों से रहती थी। वह अपने पाँच वर्ष के बालक को लिये हुए महाकाल के मन्दिर में गयी और उसने राजा चन्द्रसेन द्वारा की हुई महाकाल की पूजा का आदरपूर्वक दर्शन किया। राजा के शिवपूजन का वह आश्चर्यमय उत्सव देखकर उसने भगवान् को प्रणाम किया और फिर वह अपने निवासस्थान पर लौट आयी। ग्वालिन के उस बालक ने भी वह सारी पूजा देखी थी। अत: घर आनेपर उसने कौतूहलवश शिवजी की पूजा करने का विचार किया। एक सुन्दर पत्थर लाकर उसे अपने शिविर से थोड़ी ही दूरपर दूसरे शिविर के एकान्त स्थान में रख दिया और उसी को शिवलिंग माना। फिर उसने भक्तिपूर्वक कृत्रिम गन्ध, अलंकार, वस्त्र, धूप, दीप और अक्षत आदि द्रव्य जुटाकर उनके द्वारा पूजन करके मनःकल्पित दिव्य नैवेद्य भी अर्पित किया। सुन्दर-सुन्दर पत्तों और फूलों से बारंबार पूजन करके भांति-भांति से नृत्य किया और बारंबार भगवान् के चरणों में मस्तक झुकाया। इसी समय ग्वालिन ने भगवान् शिव में आसक्तचित्त हुए अपने पुत्र को बड़े प्यार से भोजन के लिये बुलाया। परंतु उसका मन तो भगवान् शिव की पूजा में लगा हुआ था। अत: जब बारंबार बुलाने पर भी उस बालक को भोजन करने की इच्छा नहीं हुई, तब उसकी माँ स्वयं उसके पास गयी और उसे शिव के आगे आँख बंद करके ध्यान लगाये बैठा देख उसका हाथ पकड़कर खींचने लगी। इतनेपर भी जब वह न उठा, तब उसने क्रोध में आकर उसे खूब पीटा। खींचने और मारने-पीटने पर भी जब उसका पुत्र नहीं आया, तब उसने वह शिवलिंग उठाकर दूर फेंक दिया और उसपर चढ़ायी हुई सारी पूजा-सामग्री नष्ट कर दी। यह देख बालक 'हाय-हाय' करके रो उठा। रोष से भरी हुई ग्वालिन अपने बेटे को डाँट-फटकार कर पुन: घर में चली गयी। भगवान् शिव की पूजा को माता के द्वारा नष्ट की गयी देख वह बालक 'देव! देव! महादेव!' की पुकार करते हुए सहसा मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। उसके नेत्रों से आँसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। दो घड़ी बाद जब उसे चेत हुआ, तब उसने आँखें खोलीं।
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