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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

सूतजी कहते हैं- ऐसा कहकर उन सबने उन्हें पत्थरों से मारना आरम्भ किया। वे गालियाँ दे-देकर गौतम और अहल्या को सताने लगे। उन दुष्टों के मारने और धमकाने पर गौतम बोले- 'मुनियो! मैं यहाँ से अन्यत्र जाकर रहूंगा' ऐसा कहकर गौतम उस स्थान से तत्काल निकल गये और उन सबकी आज्ञा से एक कोस दूर जाकर उन्होंने अपने लिये आश्रम बनाया। वहाँ भी जाकर उन ब्राह्मणों ने कहा- 'जबतक तुम्हारे ऊपर हत्या लगी है तबतक तुम्हें कोई यज्ञ-यागादि कर्म नहीं करना चाहिये। किसी भी वैदिक देवयज्ञ या पितृयज्ञ के अनुष्ठान का तुम्हें अधिकार नहीं रह गया है।' मुनिवर गौतम उनके कथनानुसार किसी तरह एक पक्ष बिताकर उस दुःखसे दुःखी हो बारंबार उन मुनियों से अपनी शुद्धि के लिये प्रार्थना करने लगे। उनके दीनभाव से प्रार्थना करने पर उन ब्राह्मणोंने कहा-' गौतम! तुम अपने पाप को प्रकट करते हुए तीन बार सारी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। उसके बाद इस ब्रह्मगिरि की एक सौ एक परिक्रमा करने के पश्चात् तुम्हारी शुद्धि होगी। अथवा यहाँ गंगाजी को ले आकर उन्हीं के जल से स्नान करो तथा एक करोड़ पार्थिवलिंग बनाकर महादेवजी की आराधना करो। फिर गंगा में स्नान करके इस पर्वत की ग्यारह बार परिक्रमा करो। तत्पश्चात् सौ घर्डो के जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने पर तुम्हारा उद्धार होगा।' उन ऋषियों के इस प्रकार कहने पर गौतम ने 'बहुत अच्छा' कहकर उनकी बात मान ली। वे बोले- 'मुनिवरो! मैं आप श्रीमानों की आज्ञा से यहाँ पार्थिवपूजन तथा ब्रह्मगिरि की परिक्रमा करूँगा।' ऐसा कहकर मुनिश्रेष्ठ गौतम ने उस पर्वतकी परिक्रमा करने के पश्चात् पार्थिवलिंगों का निर्माण करके उनका पूजन किया। साध्वी अहल्या ने भी साथ रहकर वह सब कुछ किया। उस समय शिष्य-प्रशिष्य उन दोनों की सेवा करते थे।

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