गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
गंगा बोलीं- देवताओ! फिर तो सबका प्रिय करने के लिये आपलोग स्वयं ही यहाँ क्यों नहीं रहते? मैं तो गौतमजी के पाप का प्रक्षालन करके जैसे आयी हूँ उसी तरह लौट जाऊँगी। आपके समाज में यहाँ मेरी कोई विशेषता समझी जाती है इस बातका पता कैसे लगे? यदि आप यहाँ मेरी विशेषता सिद्ध कर सकें तो मैं अवश्य यहाँ रहूँगी-इसमें संशय नहीं है।
सब देवताओं ने कहा- सरिताओं में श्रेष्ठ गंगे! सबके परम सुहृद बृहस्पतिजी जब-जब सिंह राशि पर स्थित होंगे, तब-तब हम सब लोग यहाँ आया करेंगे, इसमें संशय नहीं है। ग्यारह वर्षों तक लोगों का जो पातक यहाँ प्रक्षालित होगा, उससे मलिन हो जानेपर हम उसी पापराशि को धोने के लिये आदरपूर्वक तुम्हारे पास आयेंगे। हमने यह सर्वथा सच्ची बात कही है। सरिद्वरे! महादेवि! अत: तुमको और भगवान् शंकर को समस्त लोकों पर अनुग्रह तथा हमारा प्रिय करने के लिये यहाँ नित्य निवास करना चाहिये। गुरु जब तक सिंह राशि पर रहेंगे, तभीतक हम यहाँ निवास करेंगे। उस समय तुम्हारे-जल में त्रिकालस्नान और भगवान् शंकर का दर्शन करके हम शुद्ध होंगे। फिर तुम्हारी आज्ञा लेकर अपने स्थान को लौटेंगे।
सूतजी कहते हैं- इस प्रकार उन देवताओं तथा महर्षि गौतम के प्रार्थना करने पर भगवान् शंकर और सरिताओं में श्रेष्ठ गंगा दोनों वहाँ स्थित हो गये। वहाँ की गंगा गौतमी (गोदावरी) नाम से विख्यात हुईं और भगवान् शिव का ज्योतिर्मय लिंग त्र्यम्बक कहलाया। यह ज्योतिर्लिंग महान् पातकों का नाश करनेवाला है। उसी दिन से लेकर जब-जब बृहस्पति सिंह राशि में स्थित होते है तब-तब सब तीर्थ, क्षेत्र, देवता, पुष्कर आदि सरोवर, गंगा आदि नदियाँ तथा श्रीविष्णु आदि देवगण अवश्य ही गौतमी के तटपर पधारते और वास करते हैं। वे सब जबतक गौतमी के किनारे रहते है तबतक अपने स्थान पर उनका कोई फल नहीं होता। जब वे अपने प्रदेश में लौट आते है तभी वहाँ इनके सेवन का फल मिलता है। यह त्र्यम्बक नाम से प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गौतमी के तटपर स्थित है और बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाला है। जो भक्तिभाव से इस त्र्यम्बक लिंग का दर्शन, पूजन, स्तवन एवं वन्दन करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। गौतम के द्वारा पूजित त्र्यम्बक नामक ज्योतिर्लिंग इस लोक में समस्त अभीष्टों को देनेवाला तथा परलोक में उत्तम मोक्ष प्रदान करनेवाला है। मुनीश्वरो! इस प्रकार तुमने जो कुछ पूछा था, वह सब मैंने कह सुनाया। अब और क्या सुनना चाहते हो, कहो। मैं उसे भी तुम्हें बताऊँगा, इसमें संशय नहीं है।
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