गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
गौतम बोले- नाथ! आप सच कहते है तथापि पाँच आदमियों ने जो कह दिया या कर दिया, वह अन्यथा नहीं हो सकता। अत: जो हो गया, सो रहे। देवेश! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे गंगा प्रदान कीजिये और ऐसा करके लोक का महान् उपकार कीजिये। आपको मेरा नमस्कार है, नमस्कार है।
यों कहकर गौतम ने देवेश्वर भगवान् शिव के दोनों चरणारविन्द पकड़ लिये और लोकहित की कामना से उन्हें नमस्कार किया। तब शंकरदेव ने पृथिवी और स्वर्ग के सारभूत जल को निकालकर, जिसे उन्होंने पहले से ही रख छोड़ा था और विवाह में ब्रह्माजी के दिये हुए जल में से जो कुछ शेष रह गया था, वह सब भक्तवत्सल शम्भु ने उन गौतम मुनि को दे दिया। उस समय गंगाजी का जल परम सुन्दर स्त्री का रूप धारण करके वहाँ खड़ा हुआ। तब मुनिवर गौतम ने उन गंगाजी की स्तुति करके उन्हें नमस्कार किया।
गौतम बोले- गंगे! तुम धन्य हो, कृतकृत्य हो। तुमने सम्पूर्ण भुवन को पवित्र किया है। इसलिये निश्चितरूप से नरक में गिरते हुए मुझ गौतम को पवित्र करो।
तदनन्तर शिवजीने गंगासे कहा- देवि! तुम मुनि को पवित्र करो और तुरंत वापस न जाकर वैवस्वत मनु के अट्ठाईसवें कलियुगतक यहीं रहो।
गंगा ने कहा- महेश्वर! यदि मेरा माहात्म्य सब नदियों से अधिक हो और अम्बिका तथा गणों के साथ आप भी यहाँ रहें, तभी मैं इस धरातल पर रहूँगी।
गंगाजीकी यह बात सुनकर भगवान् शिव बोले- गंगे! तुम धन्य हो। मेरी बात सुनो। मैं तुमसे अलग नहीं हूँ, तथापि मैं तुम्हारे कथनानुसार यहाँ स्थित रहूँगा। तुम भी स्थित होओ।
अपने स्वामी परमेश्वर शिव की यह बात सुनकर गंगा ने मन-ही-मन प्रसन्न हो उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसी समय देवता, प्राचीन ऋषि, अनेक उत्तम तीर्थ और नाना प्रकारके क्षेत्र वहाँ आ पहुँचे। उन सबने बड़े आदर से जय-जयकार करते हुए गौतम, गंगा तथा गिरिशायी शिव का पूजन किया। तदनन्तर उन सब देवताओं ने मस्तक झुका हाथ जोड़कर उन सबकी प्रसन्नतापूर्वक स्तुति की। उस समय प्रसन्न हुई गंगा और गिरीश ने उनसे कहा-'श्रेष्ठ देवताओ! वर माँगो। तुम्हारा प्रिय करने की इच्छा से वह वर हम तुम्हें देंगे।'
देवता बोले- देवेश्वर! यदि आप संतुष्ट हैं और सरिताओं में श्रेष्ठ गंगे! यदि आप भी प्रसन्न हैं तो हमारा तथा मनुष्यों का प्रिय करने के लिये आपलोग कृपापूर्वक यहाँ निवास करें।
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