मूल्य रहित पुस्तकें >> रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
सुनि प्रभु बचन मगन सब भए।
निमिष निमिष उपजत सुख नए।।5।।
निमिष निमिष उपजत सुख नए।।5।।
प्रभुके वचन सुनकर सब प्रेम और आनन्द में मग्न हो गये। इस
प्रकार पल-पल में उन्हें नये-नये सुख उत्पन्न हो रहे हैं।।5।।
दो.-कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।
आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ ।।8क।।
आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ ।।8क।।
फिर उन लोगों ने कौसल्या जी के चरणोंमें मस्तक नवाये।
कौसल्याजीने हर्षित होकर आशिषें दीं [और कहा-] तुम मुझे रघुनाथ के समान
प्यारे हो।।8(क)।।
सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद।।8ख।।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद।।8ख।।
आनन्दकन्द श्रीरामजी अपने महल को चले, आकाश फूलों की वृष्टि से
छा गया। नगरके स्त्री-पुरुषों के समूह अटारियों पर चढ़कर उनके दर्शन कर रहे
हैं।।8(ख)।।
चौ.-कंचन कलस बिचित्र संवारे।
सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।।
बंदनवार पताका केतू।
सबन्हि बनाए मंगल हेतू।।1।।
सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।।
बंदनवार पताका केतू।
सबन्हि बनाए मंगल हेतू।।1।।
सोनेके कलशों को विचित्र रीतिसे [मणि-रत्नादिसे] अलंकृत कर और
सजाकर सब लोगोंने अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया। सब लोगों ने मंगलके लिये
बंदनवार, ध्वजा और पताकाएँ लगायीं।।1।।
बीथीं सकल सुगंध सिंचाई।
गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।।
नाना भाँति सुमंगल साजे।
हरषि नगर निसान बहु बाजे।।2।।
गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।।
नाना भाँति सुमंगल साजे।
हरषि नगर निसान बहु बाजे।।2।।
सारी गलियाँ सुगन्धित द्रवोंसे सिंचायी गयीं। गजमुक्ताओंसे रचकर
बहुत-सी चौकें पुरायी गयीं अनेकों प्रकार के सुन्दर मंगल-साज सजाये गये और
हर्षपूर्वक नगरमें बहुत-से डंके बजने लगे।।2।।
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