मूल्य रहित पुस्तकें >> रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
जहँ तहँ नारि निछावरि करहीं।
देहिं असीस हरष उर भरहीं।।
कंचन थार आरतीं नाना।
जुबतीं सजें करहिं सुभ गाना।।3।।
देहिं असीस हरष उर भरहीं।।
कंचन थार आरतीं नाना।
जुबतीं सजें करहिं सुभ गाना।।3।।
स्त्रियाँ जहाँ-तहाँ निछावर कर रही है, और हृदय में हर्षित होकर
आशीर्वाद देती है। बहुत-सी युवती [सौभाग्यवती] स्त्रियाँ सोने के थालों में
अनेकों प्रकारकी आरती सजाकर मंगलगान कर रही है।।3।।
करहिं आरती आरतिहर कें।
रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।।
पुर शोभा संपति कल्याना।
निगम सेष सारदा बखाना।।4।।
रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।।
पुर शोभा संपति कल्याना।
निगम सेष सारदा बखाना।।4।।
वे आर्तिहर (दुःखोंको हरनेवाले) और सूर्यकुलरूपी कमलवनके
प्रफुल्लित करनेवाले सूर्य श्रीरामजीकी आरती कर रही हैं। नगरकी शोभा,
सम्पत्ति और कल्याणका वेद, शेषजी और सरस्वती वर्णन करते हैं-।।4।।
तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं।
उमा तासु गुन नर किमि कहहीं।।5।।
उमा तासु गुन नर किमि कहहीं।।5।।
परन्तु वे भी यह चरित्र देखकर ठगे-से रह जाते हैं (स्तम्भित हो
रहते हैं)। [शिवजी कहते हैं-] हे उमा! तब भला मनुष्य उनके गुणोंको कैसे कह
सकते हैं।।5।।
दो.-नारि कुमुदिनीं अवध सर रघुपति बिरह दिनेस।
अस्त भएँ बिगसत भईं निरखि राम राकेस।।9क।।
अस्त भएँ बिगसत भईं निरखि राम राकेस।।9क।।
स्त्रियाँ कुमुदनीं हैं, अयोध्या सरोवर है और श्रीरघुनाथजीका
विरह सूर्य है [इस विरह सूर्य के ताप से वे मुरझा गयी थीं]। अब उस विरह रूपी
सूर्य के अस्त होनेपर श्रीरामरूपी पूर्णचन्द्रको निरखकर वे खिल उठीं।।9(क)।।
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