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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538
आईएसबीएन :000000000

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अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर:।
नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।16।।

कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये।।16।।

अपने कार्य को सार्थक करते हुए युधिष्ठिर ने अनन्तविजय (धर्म की सदा विजय) और नकुल तथा सहदेव ने भी अपने शंख बजाए।


काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथ:।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित।।17।।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मु: पृथक् पृथक्।।18।।

श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा दुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु - इन सभी ने, हे राजन्! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाये।।17-18।।

पाण्डव पक्ष के कुछ प्रसिद्ध योद्धाओं, जिनमें काशिराज शल्य, महारथी शिखण्डी जो कि पिछले जन्म में राजकुमारी अम्बा थी, और उसने भीष्म से बदला लेने के लिए पुरुषरूप में जन्म लिया है। द्रौपदी का भाई धष्टुद्युम्न जो कि पाण्डवों की सेना का सेनापति भी है, राजा विराट जिनके राज्य में पाण्डवों ने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष व्यतीत किया था, यादवों के महाबली और कृष्ण और बलराम के समान अजेय और शक्तिशाली सात्यकि, द्रौपदी के पिता और द्रोणाचार्य के सहपाठी तथा परम शत्रु राजा द्रुपद ने और द्रौपदी के पाँचों पुत्रों और धनुष चलाने के सर्वथा योग्य विशाल भुजाओं वाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु ने भी अपने-अपने शंख बजाए।

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