लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

679 पाठक हैं

(यह पुस्तक वेबसाइट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।)

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे।।31।।

हे केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता।।31।।

हम जानते हैं कि एक बार जब भी हम अपने आप पर संशय करने लगते हैं, तब धीरे-धीरे करके वे संशय बढ़ते ही जाते हैं। यहाँ तक कि वे संशय कुछ क्षणों के लिए बिलकुल अशक्य कर देते हैं। निराशा के उन क्षणों में यदि कोई हमे सुबुद्धि न दे तो उस नैराश्य की अवस्था से स्वयं ऊपर उठने में हमें बहुत समय लग जाता है। एक छात्र जब परीक्षा के ठीक पहले अपनी तैयारी पर शंकित हो जाता है, तो अपनी विषय वस्तु को समझने के बाद भी घबराहट में त्रुटियाँ करने लगता है। उसी घबराहट की स्थिति में कभी-कभी छात्र परीक्षा में कुछ ऐसे प्रश्न पा जाते हैं, जो कि उनका खोया हुआ आत्म-विश्वास लौटा देते हैं, और इस प्रकार संयत हुआ छात्र यदि अपनी क्षमता के अनुसार अधिकाँश प्रश्न सही न भी कर पाये, तब भी इतना तो हो ही जाता है कि वह कम से अपनी निराशा की स्थिति से ऊपर उठकर कुछ अधिक अच्छे परिणाम दे देता है। इसी प्रकार हम सभी जानते हैं कि भारतीय हाकी या क्रिकेट टीम कई बार अच्छे खिलाडियों से सुसज्जित होने के बाद भी प्रतिस्पर्धा में अपने कुछ अच्छे खिलाड़ियों का अच्छा प्रदर्शन न होने से अपना आत्म-विश्वास खो देती है और सहज ही विरोधी टीम के सामने घुटने टेक कर अत्यंत निराशाजनक प्रदर्शन करती है। इतिहास के पाठकों को ज्ञात होगा कि जर्मनी का तानाशाह जब द्वितीय महायुद्ध के समय में अपना आत्मविश्वास खो बैठा था, तो उसके बाद न केवल जर्मनी की उस युद्ध में पराजय हुई थी, बल्कि विश्व-विजेता का दम्भ करने वाला हिटलर आत्महत्या के लिए विवश हुआ था। अर्जुन लगभग वैसी ही निराशा के सागर में डुबकियाँ लगाने के लिए अग्रसर हो रहा है। इसी लिए वह कहता है कि, “मुझे लक्षण विपरीत दिख रहे हैं, और यदि मैंने युद्ध में स्वजन समुदाय को मार भी दिया, तो भी मुझे अपना और उसी दिशा में आगे सोचने पर मानव-मात्र का कल्याण नहीं दिखता।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book