मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2 श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2महर्षि वेदव्यास
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् कृष्ण सम्पूर्ण गीता का ज्ञान संक्षेप में अर्जुन को देते हैं। अध्यात्म के साधकों के लिए साधाना का यह एक सुगम द्वार है।
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।29।।
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।29।।
कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भांति देखता है और
वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्व का आश्चर्य की भांति वर्णन करता
है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भांति सुनता है और कोई-कोई
तो सुनकर भी इसको नहीं जानता।।29।।
हमारे आज के समाज में रहने वाले लाखों लोगों में से अत्यंत कम संख्या के लोग हैं जिनका ध्यान हमारे शरीर, मन, बुद्धि, आपसी सम्बन्धों (किसने क्या कहा? किसने किसको क्या दिया और किसको किससे क्या मिला?) इत्यादि की मानसिक उलझनों और जगत् से हटकर इस आत्मा की ओर जाता है। जिनका ध्यान इस ओर जाता है, वे आश्चर्य करते हैं कि इसके पहले उनका ध्यान इस ओर क्यों नहीं आकृष्ट हुआ! इनमें से जो कुछ इस आत्मा के बारे में जानने-समझने लगते हैं, वे अपने इस ज्ञान को आश्चर्य से भरकर अन्य लोगों को बतलाते हैं। तब इस आत्मा के तत्त्व ज्ञान की साधना करने वाले अन्य लोग इस ज्ञान को आश्चर्य में भर कर इनसे सुनते हैं। इन सुनने वाले लोगों में कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो इस आत्मा का वास्तविक रूप समझने लगते हैं, लेकिन सामान्यतः लोग इस ज्ञान के बारे में बार-बार सुनने के बाद भी इस आत्मा का वास्तविक रूप ठीक से समझ नहीं पाते हैं।
हमारे आज के समाज में रहने वाले लाखों लोगों में से अत्यंत कम संख्या के लोग हैं जिनका ध्यान हमारे शरीर, मन, बुद्धि, आपसी सम्बन्धों (किसने क्या कहा? किसने किसको क्या दिया और किसको किससे क्या मिला?) इत्यादि की मानसिक उलझनों और जगत् से हटकर इस आत्मा की ओर जाता है। जिनका ध्यान इस ओर जाता है, वे आश्चर्य करते हैं कि इसके पहले उनका ध्यान इस ओर क्यों नहीं आकृष्ट हुआ! इनमें से जो कुछ इस आत्मा के बारे में जानने-समझने लगते हैं, वे अपने इस ज्ञान को आश्चर्य से भरकर अन्य लोगों को बतलाते हैं। तब इस आत्मा के तत्त्व ज्ञान की साधना करने वाले अन्य लोग इस ज्ञान को आश्चर्य में भर कर इनसे सुनते हैं। इन सुनने वाले लोगों में कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो इस आत्मा का वास्तविक रूप समझने लगते हैं, लेकिन सामान्यतः लोग इस ज्ञान के बारे में बार-बार सुनने के बाद भी इस आत्मा का वास्तविक रूप ठीक से समझ नहीं पाते हैं।
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।30।।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।30।।
हे अर्जुन! यह आत्मा सबके शरीरों में सदा ही अवध्य* है। इस कारण
सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये तू शोक करने के योग्य नहीं है।। 30।।
(* जिसका वध नहीं किया जा सके।)
हम सभी जानते हैं कि शरीर नाशवान हैं, परंतु भगवान् कृष्ण इस श्लोक में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कहते हैं। इन नाशवान शरीरों में रहने वाला आत्मा हर काल में अवध्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) है। इस कारण से हममें से कुछ है जो हमेशा बना रहता है, और इसके सभी शरीरों में सदा बने रहने और शरीरों के न भी रहते हुए इसके सदा बने रहने के कारण किसी को किसी अन्य प्राणी के लिए कभी भी शोक करने की आवश्यकता नहीं है।
(* जिसका वध नहीं किया जा सके।)
हम सभी जानते हैं कि शरीर नाशवान हैं, परंतु भगवान् कृष्ण इस श्लोक में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कहते हैं। इन नाशवान शरीरों में रहने वाला आत्मा हर काल में अवध्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) है। इस कारण से हममें से कुछ है जो हमेशा बना रहता है, और इसके सभी शरीरों में सदा बने रहने और शरीरों के न भी रहते हुए इसके सदा बने रहने के कारण किसी को किसी अन्य प्राणी के लिए कभी भी शोक करने की आवश्यकता नहीं है।
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