मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2 श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2महर्षि वेदव्यास
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् कृष्ण सम्पूर्ण गीता का ज्ञान संक्षेप में अर्जुन को देते हैं। अध्यात्म के साधकों के लिए साधाना का यह एक सुगम द्वार है।
सञ्जय उवाच
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।9।।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।9।।
संजय बोले - हे राजन्! निद्रा को जीतनेवाले अर्जुन अन्तर्यामी
श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्रीगोविन्दभगवान से 'युद्ध
नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गये।।9।।
इस श्लोक के वर्णन में अर्जुन यह कहकर चुप हो जाता है कि वह युद्ध नहीं करेगा। परंतु अर्जुन के ऐसा कहने से पहले व्यासजी उसे गुडाकेश अर्थात् निद्रा को जीतने वाला और परन्तप कहते हैं। अर्जुन ने अपने अपराधों के प्रायश्चित् और कालांतर में विभिन्न शस्त्रों को सिद्ध करने के लिए कठिन तप किया था। इस कठिन तप को करते समय एकाग्रता बनाए रखने के लिए उसने अपनी निद्रा पर विजय प्राप्त कर ली थी। व्यासजी अर्जुन की मनःस्थिति का विरोधाभास यहाँ स्पष्ट कर रहे हैं। अर्जुन की प्रशंसा में उसे निद्राजित कह रहे हैं। इसी प्रकार उसे परन्तप कहकर अर्थात् एक ऐसा योद्धा बताकर जो कि धनुष का सघन प्रयोग कर अपने शत्रुओं को आहत कर देता है, वे पाठकों को यह स्मरण करवाना चाहते हैं कि अर्जुन कोई साधारण व्यक्ति न होकर बल्कि एक कर्मठ और विशेष योद्धा है। दूसरी ओर यही महान् योद्धा इस समय अपनी मन-बुद्धि और इंद्रियों पर ही नियंत्रण नहीं कर पा रहा है। यदि मानसिक शक्तियाँ ही नियंत्रण में न होंगी, तब वह इस भावी महायुद्ध में किस प्रकार युद्ध कर पायेगा? व्यास जी भगवान श्रीकृष्ण को हृषीक् अर्थात् इंद्रियों के ईश्वर के नाम से कहकर यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस समय अर्जुन की मनःस्थिति के लिए भगवान् का हृषीकेश नाम ही उपयुक्त है और क्योंकि वे इंद्रियों के स्वामी हैं और इस समस्या के लिए उपयुक्त समाधान वे ही बता सकते हैं।
इस श्लोक के वर्णन में अर्जुन यह कहकर चुप हो जाता है कि वह युद्ध नहीं करेगा। परंतु अर्जुन के ऐसा कहने से पहले व्यासजी उसे गुडाकेश अर्थात् निद्रा को जीतने वाला और परन्तप कहते हैं। अर्जुन ने अपने अपराधों के प्रायश्चित् और कालांतर में विभिन्न शस्त्रों को सिद्ध करने के लिए कठिन तप किया था। इस कठिन तप को करते समय एकाग्रता बनाए रखने के लिए उसने अपनी निद्रा पर विजय प्राप्त कर ली थी। व्यासजी अर्जुन की मनःस्थिति का विरोधाभास यहाँ स्पष्ट कर रहे हैं। अर्जुन की प्रशंसा में उसे निद्राजित कह रहे हैं। इसी प्रकार उसे परन्तप कहकर अर्थात् एक ऐसा योद्धा बताकर जो कि धनुष का सघन प्रयोग कर अपने शत्रुओं को आहत कर देता है, वे पाठकों को यह स्मरण करवाना चाहते हैं कि अर्जुन कोई साधारण व्यक्ति न होकर बल्कि एक कर्मठ और विशेष योद्धा है। दूसरी ओर यही महान् योद्धा इस समय अपनी मन-बुद्धि और इंद्रियों पर ही नियंत्रण नहीं कर पा रहा है। यदि मानसिक शक्तियाँ ही नियंत्रण में न होंगी, तब वह इस भावी महायुद्ध में किस प्रकार युद्ध कर पायेगा? व्यास जी भगवान श्रीकृष्ण को हृषीक् अर्थात् इंद्रियों के ईश्वर के नाम से कहकर यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस समय अर्जुन की मनःस्थिति के लिए भगवान् का हृषीकेश नाम ही उपयुक्त है और क्योंकि वे इंद्रियों के स्वामी हैं और इस समस्या के लिए उपयुक्त समाधान वे ही बता सकते हैं।
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच:।।10।।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच:।।10।।
हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों
सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए-से यह वचन बोले।।10।।
युद्ध प्रारम्भ होने के ठीक पहले अपने समय की सबसे बड़ी सेनाओं के मध्य में खड़े हुए अर्जुन को शोक करके अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण छोड़ते देखकर भगवान् कृष्ण लगभग विनोद (उपहास करने) के वचन आगे कहते हैं। किसी कठिन परिस्थिति में उचित कार्य करने के स्थान पर यदि आप अपने मित्र को अनर्गल प्रलाप करते हुए देखें तो संभवतः आप भी उसकी अवस्था पर विचार करते हुए हँस कर उसकी इस असमंजस पूर्ण अवस्था का उपहास ही करेंगे।
युद्ध प्रारम्भ होने के ठीक पहले अपने समय की सबसे बड़ी सेनाओं के मध्य में खड़े हुए अर्जुन को शोक करके अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण छोड़ते देखकर भगवान् कृष्ण लगभग विनोद (उपहास करने) के वचन आगे कहते हैं। किसी कठिन परिस्थिति में उचित कार्य करने के स्थान पर यदि आप अपने मित्र को अनर्गल प्रलाप करते हुए देखें तो संभवतः आप भी उसकी अवस्था पर विचार करते हुए हँस कर उसकी इस असमंजस पूर्ण अवस्था का उपहास ही करेंगे।
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