मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3 श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3महर्षि वेदव्यास
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न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।22।।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।22।।
हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है
और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही
बरतता हूँ।।22।।
सृष्टि में निर्माण और प्रलय की आवृत्ति होती रहती है। जब सृष्टि आरंभ होती है तब उसमें आरंभ में जड़ पदार्थ पहले उत्त्पन्न होते है। समय के साथ उपयुक्त वातावरण में चेतन प्राणी उत्पन्न होते हैं। चेतन प्राणियों में क्रमशः विकास होता है और अंततः मनुष्य उत्पन्न होते हैं। सृष्टि का यह विकास ईश्वर की कृपा और ईश्वर के कारण से होता है। इस विकास क्रम को एक भिन्न प्रकार से देखें तो मनुष्य को अपने जीवन को चलाने के लिए भोजन और सुरक्षा की आवश्यकता होती है। सुरक्षा मनुष्य को मिलती है, पहले से उपस्थित धरती और धरती पर प्राप्त रासायनिक तत्त्वों से। इसी प्रकार उसे भोजन मिलता है धरती पर उपस्थित वनस्पति तथा अन्य प्राणियों से। इस प्रकार सब प्राणियों को भोजन मिलता है, वनस्पति से। वनस्पति को जीवन मिलता है जल, वायु, अग्नि (ऊष्मा) और प्रकाश से। जल, वायु, अग्नि और प्रकाश उपस्थित हैं आकाश के कारण और आकाश तथा इन सभी पंचतत्त्वों का आधार है ईश्वर जो कि इन्हें हर कल्प में सृष्टि के आरंभ से अंत तक बनाए रखता है। यदि एक क्षण के न्यूनतम भाग के लिए भी ईश्वर यह महत्वपूर्ण कार्य न करे तो सृष्टि समाप्त हो सकती है। ईश्वर यह कार्य किसी व्यक्ति अथवा प्राणी को सुखी रखना है या उससे कुछ फलस्वरूप प्राप्त करना है इस कारण से नहीं करते, बल्कि यह उनका शाश्वत कर्म है इस भाव से करते रहते हैं।
सृष्टि में निर्माण और प्रलय की आवृत्ति होती रहती है। जब सृष्टि आरंभ होती है तब उसमें आरंभ में जड़ पदार्थ पहले उत्त्पन्न होते है। समय के साथ उपयुक्त वातावरण में चेतन प्राणी उत्पन्न होते हैं। चेतन प्राणियों में क्रमशः विकास होता है और अंततः मनुष्य उत्पन्न होते हैं। सृष्टि का यह विकास ईश्वर की कृपा और ईश्वर के कारण से होता है। इस विकास क्रम को एक भिन्न प्रकार से देखें तो मनुष्य को अपने जीवन को चलाने के लिए भोजन और सुरक्षा की आवश्यकता होती है। सुरक्षा मनुष्य को मिलती है, पहले से उपस्थित धरती और धरती पर प्राप्त रासायनिक तत्त्वों से। इसी प्रकार उसे भोजन मिलता है धरती पर उपस्थित वनस्पति तथा अन्य प्राणियों से। इस प्रकार सब प्राणियों को भोजन मिलता है, वनस्पति से। वनस्पति को जीवन मिलता है जल, वायु, अग्नि (ऊष्मा) और प्रकाश से। जल, वायु, अग्नि और प्रकाश उपस्थित हैं आकाश के कारण और आकाश तथा इन सभी पंचतत्त्वों का आधार है ईश्वर जो कि इन्हें हर कल्प में सृष्टि के आरंभ से अंत तक बनाए रखता है। यदि एक क्षण के न्यूनतम भाग के लिए भी ईश्वर यह महत्वपूर्ण कार्य न करे तो सृष्टि समाप्त हो सकती है। ईश्वर यह कार्य किसी व्यक्ति अथवा प्राणी को सुखी रखना है या उससे कुछ फलस्वरूप प्राप्त करना है इस कारण से नहीं करते, बल्कि यह उनका शाश्वत कर्म है इस भाव से करते रहते हैं।
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