लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

महर्षि वेदव्यास

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1980
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 67
आईएसबीएन :00000000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

23323 पाठक हैं

(यह पुस्तक वेबसाइट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।)


 
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्।।29।।


प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मो में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझनेवाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे।।29।।

प्रकृति को त्रिगुणात्मिका कहा जाता है। त्रिगुण अर्थात् सत्, रजस और तमस। तमस अर्थात् अधंकार, और अंधकार निष्क्रियता का वाहक और पोषक है। प्रकृति में यह आवश्यक तथा अविभाज्य अंग है। यदि अंधकार न होकर प्रकाश ही प्रकाश रहे तब भी मनुष्यों सहित सभी प्राणियों के लिए बड़ी गंभीर समस्या हो जायेगी। प्रकृति का प्रादुर्भाव इस प्रकार हुआ है कि प्रकाश और अंधकार का एक संतुलन बना रहता है। सभी चेतन प्राणी सतत् कर्म और आराम की पुनरावृत्ति करते रहते हैं।

प्रकाश की उपस्थिति में कर्म होते हैं, अंधकार में कर्म रुक जाते हैं। तमस गुण के प्रभाव में व्यक्ति निष्क्रिय हो जाता है, आराम करना चाहता है, मात्र सुख के साधन ढूँढ़ता है। इस प्रकार उसकी आसक्ति निष्क्रियता में अधिक होती है। इसी प्रकार रजस अर्थात् रजोगुण से प्रभावित व्यक्ति सक्रिय होता है। उसकी सक्रियता श्री, धन अथवा विभिन्न उपभोगों में उसकी आसक्ति का कारण बनती है। इसी प्रकार जो लोग संयत एवं शान्त स्वभाव के होते हैं। जो सक्रिय तो होते हैं, पर उनकी सक्रियता व्यक्तिगत लाभ के लिए न होकर समाज कल्याण के लिए होती है। जो विचारशील होते हैं, इस प्रकार के लोगों की आसक्ति सत् गुण में अधिक होती है। ज्ञानी व्यक्ति तमस, रजस और सत् तीनों गुणों के कार्य करता है, परंतु इन सभी कार्यों में आसक्त नहीं होता है। इस लिए भगवान् ज्ञानी व्यक्ति को चेतावनी देते हैं, कि वह अपने इस ज्ञान को केवल उचित अधिकारी को ही दे, अर्थात् केवल ऐसे व्यक्ति को जिसने आध्यात्मिक प्रगति इस सीमा तक कर ली है कि इन सभी गुणों के पार जा सके, उसी से इस संबंध में चर्चा करे। क्योंकि यदि वह तमस स्वभाव में आसक्त व्यक्ति को कर्म का वास्तविक भेद बताएगा, तो यह संभावना है कि इस ज्ञान का तामसी व्यक्ति पर उलटा प्रभाव पड़ सकता है। इस ज्ञान को ठीक से न समझ पाने के कारण तामसी व्यक्ति अकर्मण्य हो सकता है। रजस् स्वभाव वाला व्यक्ति तो इतना क्रियाशील होता है, कि उसे ज्ञानी की बात सुनने में ही निराधार लग सकती है। इसी प्रकार सतोगुण वाला व्यक्ति भी सतगुण से अपनी आसक्ति के कारण उसी को श्रेष्ठ समझेगा और ज्ञानी की बात से किंकर्तव्यविमूढ़ हो सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book