लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

महर्षि वेदव्यास

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1980
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 67
आईएसबीएन :00000000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

23323 पाठक हैं

(यह पुस्तक वेबसाइट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।)



श्रीभगवानुवाच

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।37।।


श्रीभगवान् बोले - रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है, यह बहुत खानेवाला अर्थात् भोगों से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू इस विषय में वैरी जान।।37।।

रज अर्थात् धूलि और रजोगुण अर्थात् पृथ्वी पर और पृथ्वी से उत्पन्न वस्तुओं के गुण। सामान्य भाषा में रजोगुणी व्यक्ति उसे कहते हैं जिसका जीवन भौतिक इच्छाओं की पूर्ति में ही व्यतीत होता है। प्रकृति में रजोगुण की उत्पत्ति के पश्चात् काम अर्थात् इच्छाओं और क्रोध की उत्पत्ति साथ-साथ होती है। भगवान् कहते है कि काम महाशन अर्थात् अनवरत् भक्षण करने वाला होता है। जीवन में इच्छाएँ एक के बाद एक जीवन पर्यन्त होती रहती हैं। जीवन में सफलता की इच्छा, अधिक धन कमाने की इच्छा, नाम कमाने की इच्छा, हर प्रकार की सुख-सुविधाओँ की इच्छा आदि तो मानव जाति में प्रसिद्ध हैं ही, परंतु सारा जीवन छोटी-छोटी इ्च्छाओं से भी ओत-प्रोत रहता है। पिछले श्लोक में भगवान् राग-द्वेष को जीवन में पिरोया हुआ बता कर मनुष्य की सारी समस्याओँ का मूल स्रोत बताते हैं। राग-द्वेष के कारण ही मनुष्य को अच्छी लगने वाली वस्तुओँ के मिलने की कामना और न अच्छी लगने वाली वस्तुओं के न मिलने की कामना उत्पन्न होती है।

अब जीवन में चूँकि हमारे अतिरिक्त और भी लोग हैं, इसलिए यह तो संभव ही नहीं कि मात्र हमारी ही कामनाएँ पूरीं हों, और अन्य लोग अपनी कामनापूर्ति की केवल चाह ही करते रहें। अर्थात् हमारी कुछ कामनाएँ पूरी होंगी और कुछ नहीं हो सकेंगी। जब-जब व्यक्ति की कामनापूर्ति में किसी प्रकार का व्यवधान आता है, या उसकी संभावना भी उत्पन्न होती है, यहाँ तक कि वर्तमान में भी इच्छापूर्ति में कोई व्यवधान की आशंका होती है, तो इसके कारण जो भावना मन में उत्पन्न होती है, हम उसे क्रोध कहते हैं। क्रोध की अवस्था में मनुष्य उचित-अनुचित का निर्णय नहीं कर पाता है, इसके फलस्वरूप कोई अपराध अथवा दुर्व्यवहार कर बैठता है। भगवान् कहते हैं कि काम और क्रोध हमारे वैरी है, इनका एकमात्र कार्य हमें हानि पहुँचना है। आनन्दमय जीवन जीने के लिए हमें यह विचार अच्छी तरह से समझकर अपने मन में बैठा लेना चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book