मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3 श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3महर्षि वेदव्यास
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एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।43।।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।43।।
इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात् सूक्ष्म, बलवान् और
अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके हे
महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल।।43।।
भगवान् कहते हैं कि आत्मा अत्यन्त सूक्ष्म, बलवान् और श्रेष्ठ है यह जानते हुए भी यदि हमें इस आत्मा के बारे में और अधिक जानना है तो इंद्रियों के वश में हुए चंचल मन को संयम में करते हुए कामनाओं को नियंत्रण में करना चाहिए। कामनाएँ हमें कितने शक्तिशाली पाश में बांध सकती हैं, यह सभी विचारवान लोग जानते हैं। इसलिए इन कामनाओँ को दुर्जय जानते हुए इनसे अत्यंत सावधानी और सतर्कता से निपटना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हमने अपने जीवन में चाहें जितने कार्य संयम बरतते हुए किये हों, परंतु फिर भी कभी-न-कभी ऐसे अवसर आ ही जाते हैं, जब कामनाएँ अपना प्रबल, दुर्दम्य और उग्र रूप दिखाती हैं। इसलिए ऐसा कहना तो सरल है कि कामनाओं को वश में करना चाहिए, परंतु उसे कर पाना अत्यंत कठिन है।
ॐ तत्सदिति श्रीमद्धगवद्रीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्याय:।। 3।।
भगवान् कहते हैं कि आत्मा अत्यन्त सूक्ष्म, बलवान् और श्रेष्ठ है यह जानते हुए भी यदि हमें इस आत्मा के बारे में और अधिक जानना है तो इंद्रियों के वश में हुए चंचल मन को संयम में करते हुए कामनाओं को नियंत्रण में करना चाहिए। कामनाएँ हमें कितने शक्तिशाली पाश में बांध सकती हैं, यह सभी विचारवान लोग जानते हैं। इसलिए इन कामनाओँ को दुर्जय जानते हुए इनसे अत्यंत सावधानी और सतर्कता से निपटना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हमने अपने जीवन में चाहें जितने कार्य संयम बरतते हुए किये हों, परंतु फिर भी कभी-न-कभी ऐसे अवसर आ ही जाते हैं, जब कामनाएँ अपना प्रबल, दुर्दम्य और उग्र रूप दिखाती हैं। इसलिए ऐसा कहना तो सरल है कि कामनाओं को वश में करना चाहिए, परंतु उसे कर पाना अत्यंत कठिन है।
ॐ तत्सदिति श्रीमद्धगवद्रीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्याय:।। 3।।
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