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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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यह एक विहंगम दृश्य पाकिस्तान का सन् १९४७ से सन् १९५८ तक का देखकर तेजकृष्ण खिलखिलाकर हंस पड़ा। नज़ीर विस्मित पति का मुख देखने लगी। वह इस हंसी का कारण नहीं समझ सकी।
‘‘क्यों? कुछ नहीं समझीं न?’’ तेजकृष्ण ने पत्नी को देख पूछ लिया।
‘‘जी नहीं।’’
‘‘मैं यह विचार कर रहा हूं कि उस डिक्टेटर की लड़की को अपने दिल की रानी बनाया है जिसने इस्कन्दर मिर्जा जैसे धूर्त को भी चकमा दिया है!’’
‘‘ओह! तो आप समझतें हैं कि मैं भी आप जैसी लोमड़ी को चमका दे सकूंगी?’’
‘‘मगर मैं तो इस्कन्दर जैसा धूर्त नहीं हूं। इस पर भी तुम्हारे गुणी ‘फादर’ के विषय में ज्ञान हो गया है।’’
‘‘एक दिन फादर रात का खाना मेरे साथ खा रहे थे तो मैंने इस घटना की ओर संकेत कर पूछा था, ‘आपने एक बहुत बड़े मूजी को सन्मार्ग दिखाया है।’’
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