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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘हां! मैं मिर्जा के स्वभाव को पहले ही जानता था। इस दोगले के स्वभाव से मैं सतर्क था। जब यह पेशावर में डिप्टी कमिश्नर था तब यह अपनी चतुराई से एक कबीले वालों को दूसरे कबीले वालों के विरुद्ध करने में सिद्धहस्त माना जाता था। जब इसने मुझसे मेलजोल आरम्भ किया और राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ने लगा तो मैं तब ही समझ गया था कि इसको शक्ति की चोटी पर पहुंचने में सहायता दी जा सकती है। शर्त यह है कि इसकी सहायता से अपना कोई हित सिद्ध न किया जाये। मैंने ऐसा ही किया। एक अंग्रेज़ी गुलाम के दर्जा से उठकर यह धीरे-धीरे पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बन गया। मैं उसकी सहायता कर रहा था। मैं जानता था कि यह इससे भी आगे जाने का यत्न करेगा और स्वयं डिक्टेटर बनना चाहेगा। इसमें मैंने इसकी सहायता नहीं की। मैं चुपचाप देखता रहा।
‘जब इसने नवाब क्लाट को बलि का बकरा बना असेम्बली भंग की और स्वयं पूर्ण पाकिस्तान का शहंशाह बन गया तो मैं अपने साथ तीन अन्य सैनिक अफसरों को लेकर चुपचाप इसके घर पर जा धमका। मैंने इसे बुलाया और मेरे साथियों ने पिस्तौल निकाल लिए।’
‘मिर्जा ने विस्मय में पूछा, ‘‘यह क्या है?’’
‘‘मैंने इसका त्याग-पत्र जो टाइप कराकर अपने साथ ले गया था, सामने रख कहा, ‘‘इस पर हस्ताक्षर कर दो।’’
‘‘इसने पढ़ा। उसमें लिखा था–‘‘मैं देख रहा हूं कि पाकिस्तान की जनता मुझे पसन्द नहीं कर रही है और पाकिस्तान को वर्तमान बेअमनी से बचाने के लिए मैं गवर्नर जनरल के पद से त्याग-पत्र देता हूं और सेना के सर्वोच्य अधिकारी कमाण्डर-इन-चीफ मेजर जनरल अय्यूब खान को अपने स्थान पर नियुक्त करता हूं। खुदा हाफिज!’’
‘मिर्जा हस्ताक्षर करने से आनाकानी करना चाहता था, परन्तु मेरे तीनों साथियों को पिस्तौल उसकी छाती की ओर ताने देख मुझसे कलम माँग उसने हस्ताक्षर कर दिये।’
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