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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘मगर, मेरा प्रश्न था, ‘अमेरिका एक डेमोक्रेसी होते हुए भारत की डेमोक्रेसी के विरुद्ध एक तानाशाह की सहायता क्यों करेगा?’
‘करेगा! वह केवल इसलिए कि अमेरिका एक गधा मुल्क है। इस सदी के दो महान युद्धों में अमेरिका को लाभ रहा है और अनाधिकारी के हाथ में अपार धन आ जाने से जो हालत उसकी होती है, वह अमेरिका की हो रही है।’
‘मैं इससे पाकिस्तन का भविष्य उज्ज्वल करना चाहता हूं।’
‘भारत से युद्ध करने पर पाकिस्तान हानि उठायेगा।’ मैंने अपने मन की बात कह दी।’
‘पापा ने पूछ लिया, ‘क्या हानि उठायेगा?’
‘सहस्त्रों युवक मारे जायेंगे। औरतें विधवा होंगी और धन की अपार क्षति होगी।’
‘ऐसा तो होता ही है। जो कौम इन बातों से डरती है वह उन्नति तो दूर रही, अपना अस्तित्व भी नहीं रख सकती।’
तेजकृष्ण रात का खाना खाकर नज़ीर से बतायी पाकिस्तान की कथा को सुन विचार करता हुआ पलंग पर लेटा तो सो गया। अगले दिन नियमानुसार वह चार बजे उठा और हाथ-पांव धो अपना बुलेटिन टाइप करने जा बैठा।
छः बजे नजी़र करवटें लेने लगी। तब तक तेजकृष्ण अपने बुलेटिन के चार पृष्ठ टाइप कर चुका था। आंखें मलती हुई नज़ीर उठी और पति को अपना बुलेटिन लिफाफे में बन्द करते देख बोली, ‘‘थैक्स गॉड! आप इस ‘ड्रज़री’ (चक्की पीसने) से अवकाश पा चुके हैं।’’
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