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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हां, बताओ! अब तुम्हें क्या करना है जो मेरे इस काम से अवकाश पाने पर उसका घन्यवाद कर रही हो जिसके अस्तित्व को तुम स्वीकार नहीं करतीं।’
‘‘किसके अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती।’’
‘‘परमात्मा का धन्यवाद कर रही थीं न!’’
‘‘मैं तो आपका धन्यवाद कर रही थी।’’
‘‘तो मैं ‘गॉड’ हूं?’’
‘‘मेरे लिए! अवकाश आपने पाया है और मैं आपसे ही कुछ कहने का अवसर देख आपका धन्यवाद कर रही थी।’’
‘‘अच्छा तो डीयर, कहो मैं क्या करूँ?’’
‘‘करो कुछ नहीं। यह बताओ कि मैं अपनी माँ को पत्र लिखूं अथवा नहीं?’’
‘‘लिख सकती हो। यहां का पता नहीं लिखना। केवल यह लिख सकती हो कि तुम भारत में किसी गुप्त स्थान पर रहती हुई यह पत्र लिख रही हो। यह भी लिख सकती हो कि तुम अपनी माँ का सुख-समाचार यहां बैठी पा रही हो।’’
‘‘हां! कल मिसेज़ मिचल ने बताया था कि माँ स्वस्थ, सन्तुष्ट और मेरे एक भले व्यक्ति के पल्ले पड़ जाने पर प्रसन्न है।’’
‘‘तो बस ठीक है। तुम एक बात और कर सकती हो। एक पत्र एक खाली कागज पर अपने हाथ से लिख दो। आज की तारीख दे सकती हो। मैं वह कमिश्नर के कार्यालय द्वारा भिजवा दूंगा।’’
इस आश्वासन पर वह उठी और स्वयं टाइप-राइटर पर बैठ माँ को पत्र टाइप करने लगी।
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