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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर ने कहा, ‘‘आप वस्त्र बदलिये। यह आपका स्लीपिंग सूट है।’’
‘‘तुम भी कपड़े बदल लो।’’
‘‘वह मेरे सोने के कमरे में रखे हैं।’’
‘‘उनको यहां ही मंगवा लो।’’
‘‘मगर यहां कोई है नहीं। नसीम नीचे चली गयी है।’’
अय्यूब खान अभी विचार ही कर रहा था कि इसके लिए क्या कहे कि नज़ीर अपने सोने के कमरे में गयी और वहां से भाग कर बैड रूम नम्बर तीन में जाकर भीतर से द्वार बन्द कर सो रही।
एक घण्टा भर वह फादर के सो जाने की प्रतीक्षा करती रही। वह अपने सोने के कमरे में ‘लव-लिरिक्स’ गाता रहा। पीछे वह शान्त हो सो गया।
नज़ीर भी सो गयी। प्रायःकाल वह उठ स्नानादि से अवकाश पा वस्त्र पहन बाहर निकली तो गवर्नर बहादुर का सोने का कमरा बाहर से बन्द था। सोने के कमरे नम्बर एक और दो भीतर से सम्बन्धित थे। दोनों को बाहर से चिटकनी लगी थी। नसीम वहां खड़ी थी। वह मुस्कराती हुई नज़ीर की ओर देखने लगी तो नज़ीर ने पूछ लिया, ‘‘नज़ीर! गवर्नर बहादुर अभी उठे हैं अथवा नहीं?’’
‘‘बाथरूम में गये मालूम होते हैं।’’
‘‘और यह बाहर से बन्द किसने किया है?’’
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