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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
गवर्नर ने बात बदलने के लिए कह दिया, ‘‘मुझे पापा मत कहो। मैं तुम्हारा फादर नहीं हूं।’’
‘‘पर मैं तो आपकी लड़की हूं।’’
इस समय घण्टी बजी तो नसीम आ गई और बोली, ‘‘हुजूर! खाना लगा दिया है।’’
उस रात खाने के उपरान्त गवर्नर जनरल बहादुर बोले, ‘‘मैं तुमको आज एक खास बात बताने आया हूं।’’
‘‘बताइये!’’
‘‘तुम्हारे बैड रूप में चलकर बताऊंगा।’’
‘‘मगर उसमें कोई पुरुष नहीं जा सकता।’’
‘‘मैं पुरुष नहीं हूं।’’
‘‘तो क्या है?’’
‘‘मैं पाकिस्तान का डिक्टेटर मेजर जनरल अय्यूब खान हूं।’’
‘‘मगर वह भी तो पुरुष है।’’
उस दिन नज़ीर को अपने पिता की आँखों में पशुपन सवार दिखायी दे रहा था। नज़ीर ने कहा, ‘‘आइये! मैं आपको आपके सोने के कमरे में ले चलती हूं। आज आप कुछ अधिक पी गए मालूम होते हैं।’’
जब नज़ीर ने अपने फादर को बांह से पकड़ कर उठाया तो वह नज़ीर की कमर में हाथ डाल कर, उसके साथ सोने के कमरे की ओर चल पड़ा।
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