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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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आज तेजकृष्ण नेफा जाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए भागदौड़ कर रहा था। सुरक्षा सैनिक सचिवालय के कई अधिकारियों से मिलना पड़ा और वहां जाने का परमिट तथा सुविधायें पाने के लिए उन अधिकारियों को इसके लाभ बताने में दिन भर लग गया। वह सायं-काल की चाय के समय घर लौटा। अज़ीज़ अहमद वहां उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। जब वह ड्राइंग रूम में पहुंचा तो अज़ी़ज़ अहमद बोल उठा, ‘‘मिस्टर बागड़िया! आज आपने बहुत इन्तज़ार करायी है?’’
‘‘तो आप कब के बैठे हुए हैं?’’
‘‘मैं लंच के समय आया था और अभी तक यहां बैठा हुआ हूं।’’
‘‘मुझे खेद है कि आपको बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ी है। फरमाइये क्या खबर लाये है।’’
‘‘मैं आपको शिलांग में एक साहब के नाम एक पत्र देना चाहता था। पत्र के साथ कुछ मौखिक बताने की बातें थीं। इस कारण ठहरा हूं।’’
‘‘फरमाइये।’’
‘‘सब कुछ गुप्त है। किसी कमरे में अलहदा चल कर बात करें तो ठीक होगा।’’
तेजकृष्ण अज़ी़ज़ को लेकर अपने बैड रूम में चला गया।
नज़ीर को यह ठीक मालूम नहीं हुआ। वह बेचैनी से दोनों के बाहर आने की प्रतीक्षा करती रही। इस समय बेयरा सबके लिए चाय लेकर आ गया। नज़ीर उससे पूछने लगी, ‘‘मुश्ताक! साहब कुछ दिन के लिए दौरे पर जा रहे हैं और मैं यहां रहूंगी। बताओ, यहां अकेली रह सकूंगी?’’
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