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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘मैं कल ही किसी ड्राइवर को कह कर आल इण्डिया नम्बर वाली गाड़ी भाड़े पर ले दूंगा। आप चाहेंगी तो उसमें पूर्ण भारत में घूम सकेंगी।’’
आधा घण्टा लगा अज़ीज़ और तेजकृष्ण को समझने-समझाने में। तब तक चाय ठण्डी हो गयी थी। इस कारण मोहसिन को नया पानी लाने के लिए कह दिया गया।
जब चाय आयी तो अज़ीज़ ने कहा, ‘‘मेरे लिये रावलपिंडी से हुक्म आया है कि मैं वापस वहां पहुंच जाऊं। मैंने अपने हाई कमिश्नर साहब से यह सूचना भिजवायी है कि मेरा दिल्ली में रहना निहायत ज़रूरी है।
‘‘इस प्रकार मैंने यहां रहने का कम से कम कुछ काल के लिए तो पक्का प्रबन्ध करवा लिया है।’’
‘‘अंकल!’’ नज़ीर ने पूछा, ‘‘किसी दिन ‘आण्टियों’ से नहीं मिलवायेंगे?’’
‘‘वे भी तुम्हें बहुत याद करती हैं। एक दिन तुम्हें और मिस्टर बागड़िया को किसी होटल में चाय पर बुलाऊंगा।’’
‘‘इधर-उधर की बातों में चाय समाप्त हुई तो अज़ीज अहमद उठ खड़ा हुआ और तेज से हाथ मिला विदा हो गया।
नज़ीर यह जानने के लिए बहुत उत्सुक थी कि उसका पति अज़ीज साहब से अपने बैड रूम में क्या बातें करता रहा है। अज़ीज़ साहब के जाते ही उसने पूछा, ‘‘यह साहब आपसे क्या कहते थे?’’
‘‘मुझे कह रहे थे कि पाकिस्तान के विषय में चीनियों के क्या इरादे हैं, इस विषय में जानकारी प्राप्त कर दिल्ली स्थित पाकिस्तानी हाई कमिश्नर को बताना चाहिये। कुछ कागज़ात पढ़कर सुनाते रहे हैं, जिनसे उन लोगों का पूर्व परिचय हो गया है जिनसे मुझे जाकर काम लेना है।’’
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