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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘अब अज़ीज़ साहब को वापस इस्लामाबाद जाने की आज्ञा हुई है तो उसने हाई कमिश्नर को कह कर अपना दिल्ली रहना आवश्यक कहला दिया है।’’
‘‘अज़ीज़ साहब नहीं चाहते थे कि मेरे विषय में किसी प्रकार का समाचार रावलपिंडी भेजा जाए, परन्तु हाई कमिश्नर ने भेज दिया है। अभी तक वहां से किसी प्रकार की आज्ञा नहीं आयी। अज़ी़ज़ साहब को सन्देह था कि मेरे दिल्ली में रहने पर फादर को आपत्ति होगी। जब मैं इस्लामाबाद से आने लगी थी तो यह आज्ञा हो गयी थी मैं भारत में बुर्का पहन कर रहूं।’’
तेजकृष्ण उस दिन की बात स्मरण कर हंस पड़ा। नज़ीर ने बताया, ‘‘मैं तो फादर के इस फरमान का विरोध करना चाहती थी, परन्तु अज़ीज़ साहब ने मुझे समझा दिया कि मुझे उनकी सरकार के फरमान को मान जाना चाहिए।’’
‘‘अच्छा, अब सुनो।’’ तेजकृष्ण ने कहा, ‘‘मेरा काम अब दिल्ली में समाप्त हो रहा प्रतीत होता है। मुझे यह विश्वास दिलाया गया है कि मुझे नेफा में भ्रमण करने का परमिट और वहां के कमांडिंग ऑफिसर के नाम पत्र मिल जायेगा। उस पत्र में मुझे हालात जानने में सहायता की बात कही होगी। इधर अज़ीज़ साहब ने शिलांग में मुझे कुछ लोगों के नाम बताये हैं, जो मेरे तिब्बत की सीमा पार करने में सहायता करेंगे। साथ ही वहां एक ऐसे व्यक्ति के नाम पत्र दिया है जो वहां तिब्बत और भारत में ‘स्मगलिंग’ करने वालों का सरदार है।’’
‘‘तुम बताओ कि यहां रहना चाहोगी अथवा इंगलैंड वापस चली जाओगी? यदि वापस जाने का विचार हो तो यू० के० हाई कमिश्नर से कह कर मैं प्रबन्ध करवा दूँगा।’’
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