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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘मैं तो हनीमून पर आयी हुई हूं और आपके साथ ही इंगलैंड लौटूंगी।’’
‘‘मैं यत्न कर रहा हूं कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व ही दिल्ली वापस आ जाऊं। कम से कम तिब्बत से लौट आऊं।’’
‘‘तब ठीक है! मैं यत्न करूंगी कि मैं दिल्ली में ही आपकी प्रतीक्षा करूं।’’
अगले दिन वह यू० के० हाई कमिश्नर से मिलने गया तो वहां भी उसके उस दिन के बुलेटिन पर बहुत लम्बी चर्चा हुई। उसमें हाई कमिश्नर साहब का यह कहना था कि मैं चाहता हूं कि तुम्हें युद्ध-क्षेत्र में पहुंच, भारत सीमा पर से शीघ्र लौट आना चाहिये।’’
‘‘यह समाचार है,’’ तेजकृष्ण का कहना था, ‘‘कि नवम्बर के आरम्भ में चीनी आक्रमण करेंगे। उससे पूर्व ही मेरा भारत लौट आने का कार्यक्रम है।
‘‘मैं आशा करता हूं कि मैं आज आवश्यक कागज़ प्राप्त कर सकूंगा और यदि यह हो गया तो मैं कल यहां से नेफा क्षेत्र के लिए चल पड़ूंगा।’’
जब तेजकृष्ण हाई कमिश्नर से सरकारी काम की बात कर चुका तो उसने कहा, ‘‘मैं पत्नी को दिल्ली में छोड़कर जा रहा हूं। वह स्वयं यू० के० की नागरिक है और एक यू० के० नागरिक की पत्नी है। मैं समझता हूं कि यदि वह किसी प्रकार का संरक्षण यू० के० हाई कमिश्नर से मांगे तो वह उसे मिलना चाहिए।’’
‘‘तो क्या वह दिल्ली में अपने को किसी प्रकार से अरक्षित समझती है?’’
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