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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘यही कि कोशिश कर रहे हैं कि उनकी तकररी दिल्ली में रहे। यदि नहीं रही तो हम सब एक दिन हवाई जहाज में सवार हो लन्दन जा पहुंचेगी।’’
‘‘मैं तो पाकिस्तान की नागरिक हूं नहीं। इस कारण मैं वहां जाने में कोई कारण नहीं समझती। न ही वहां के शासक का कहा न मानने से किसी प्रकार का अपराध कर रही हूं।’’
अब अज़ीज़ अहमद ने कहा, ‘‘अपने हाई कमिश्नर ने यह लिख दिया है कि नज़ीर तेजकृष्ण की पत्नी को मैं आज्ञा देने की सामर्थ्य नहीं रखता और तुमने पाकिस्तान जाने से इन्कार कर दिया है।’’
‘‘ठीक है! मैं यू० के० की नागरिक होने से यू० के० हाई कमिश्नर का संरक्षण प्राप्त करने का यत्न करूंगी।’’
इस दिन अज़ीज़ और उसकी बेगमें तेजकृष्ण के आने से पहले ही चली गईं। तेजकृष्ण सायंकाल देर से आया और उसने आते ही कहा, ‘‘मैं कल कलकत्ता और गौहाटी तथा वहां से नेफा सीमा क्षेत्र को जा रहा हूं।’’
‘‘और कब तक लौटने का विचार है?’’
‘‘आज सितम्बर की बाईस तारीख है। मैं समझता हूं कि पन्द्रह दिन नेफा में लगेंगे। तदनन्तर मैं शिलांग जाऊंगा और वहां से सीमा पार कर तिब्बत जाने का यत्न करूंगा। यदि यह हो सका तो पन्द्रह दिन उसमें लग जायेंगे। इस प्रकार मैं पच्चीस-छब्बीस अक्टूबर तकलौट आने का विचार रखता हूं। जहां-जहां से भी पत्र भेजने की सुविधा हुई, मैं पत्र भेजता रहूंगा।’’
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