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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर ने अज़ीज़ साहब द्वारा मिली पाकिस्तान में उसकी मांगों का समाचार सुना दिया। तेजकृष्ण ने बताया, ‘‘मैंने तुम्हारे विषय में यू० के० हाई कमिश्नर को सूचित कर दिया है। उनका कहना है कि तुम उनसे सम्पर्क रखना और जब भी किसी प्रकार का भय समझ में आये, उनको कह देना। वह भारत सरकार से कह कर तुम्हारी रक्षा का प्रबन्ध करा देंगे।’’
इससे नज़ीर को समझ आई कि वह एक शक्तिशाली देश की नागरिक होने से निर्भय है।
अगले दिन तेजकृष्ण प्रातः छः बजे के हवाई जहाज से कलकत्ता के लिए रवाना हो गया। नज़ीर अपने पति को हवाई पत्तन पर छोड़ने गई हुई थी। वहां से लौटी तो उसे प्रतीत हुआ कि एक मोटरगाड़ी उसकी टैक्सी का पीछा करती हुई उसके मकान तक आयी है। जब टैक्सी मकान के नीचे खड़ी हुई तो वह गाड़ी चलती गयी और आगे निकल गयी। वह समझी कि कोई व्यक्ति किसी सम्बन्धी को हवाई जहाज पर छोड़ने गया है और घटनावश उसका स्थान भी यहीं है। इस विचार से निश्चिन्त हो वह अपने काम में लग गयी।
अब साढ़े सात बजने वाले थे। वह स्नानादि से निवृत्त होने के लिए बाथरूम में चली गयी।
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