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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर बहुत घबराई हुई गाड़ी से निकली थी और समझ रही थी कि वह मरती-मरती बची है। परन्तु पीछा करने वाली गाड़ी के मालिक को यह कहते सुन कि वह उनको हस्पताल पहुंचा सकता है, सतर्क हो गई। वह उसकी गाड़ी में बैठना नहीं चाहती थी। वह कहने ही वाली थी कि उसे चोट नहीं आई और वह अपने आप गाड़ी में जा सकती है, परन्तु उसके कहने से पहले ही एक अन्य गाड़ी वाला आकर बोला, ‘‘आप मेरी गाड़ी में आ जाइए। मैं आप को जहां कहें, पहुंचा सकता हूं।’’
नज़ीर ने इस प्रस्ताव का उत्तर नहीं दिया और विचार ही कर उठी थी कि क्या करे कि उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप घबराइए नहीं। मैं भारत ‘सीक्रेट पुलिस’ का एक अफसर हूं और आपकी रक्षा के लिए नियुक्त हूं।’’
नज़ीर को इससे सन्तोष हुआ और वह उस व्यक्ति की गाड़ी में जा बैठी। गाड़ी चल पड़ी, परन्तु यू० के० हाई कमिश्नर के कार्यालय की ओर जाने के स्थान किसी अन्य दिशा में चल पड़ी। जब इस बात का ज्ञान नज़ीर को हुआ तो उसने कहा, ‘‘मैं यू० के० हाई कमिश्नर से मिलने जा रही हूं।’’
‘‘वहां कुछ चक्कर खाकर चलेंगे। यही हमारा तरीका है।’’
वह चुप रही। वह गाड़ी तुगलक ऐवेन्यु की एक कोठी में जाकर ठहरी। गाड़ी में बैठा व्यक्ति जो अपने आपको पुलिस ऑफिसर कह रहा था, बोला, ‘‘आपका पीछा करने वाले को चकमा देने के लिए एक प्याला यहां चाय ले लें तो ठीक रहेगा।’’
नज़ीर का सूटकेस टैक्सी की छत पर पड़ा था। इस कारण टक्कर के समय वह उछलकर भूमि पर आ गिरा था। उसे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंची थी। वह भीतर गई तो उसका सूटकेस भी उठाकर कोठी में भीतर ले आया गया। नज़ीर ने कहा भी कि मैं शीघ्र ही यू० के० हाई कमिश्नर के कार्यालय में जाना चाहती हूं, वहां मेरी प्रतीक्षा हो रही होगी। परन्तु उस व्यक्ति ने कह दिया, ‘‘वहां हम दूसरी गाड़ी में जायेंगे, जिसका नम्बर दूसरा होगा।’’
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