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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


पन्द्रह मिनट में टेलीफोन पर मिसेज मिचल बोली। नज़ीर ने अपना सन्देह बताया तो उसने कहा, ‘‘तुम घर से बाहर मत निकलना। हम तुम्हारी रक्षा के लिए भारत सरकार के होम मिनिस्टर को कह रहे हैं।’’

लंच के उपरांत लगभग तीन बजे टेलीफोन पर मिचल ने स्वयं कहा, ‘‘नज़ीर! तुम हाई कमिश्नरी में आ जाओ। यही भारत सरकार ने उचित समझ है।’’

नज़ीर ने बिना मोहसिन को बताये कि वह कहां जा रही है, अपना सूटकेस ले टैक्सी मंगवाई और उसमें यू० के० हाई कमिश्नरी को चल पड़ी। उसे सन्देह हुआ कि वही मोटरगाड़ी जो प्रातः ऐयरोड्रोम से उसका पीछा करती हुई उसके मकान तक आई थी, अब भी उसका पीछा कर रही है। वह चिन्ता व्यक्त करती हुई जा रही थी कि एकाएक उसने टैक्सी ड्राइवर को सड़क के एक किनारे खड़ा हो जाने का कहा। वह चाहती थी कि पीछा करने वाली गाड़ी निकल जाये। परन्तु वह गाड़ी आगे निकलने के स्थान पर पीछे बहुत वेग से नज़ीर की टैक्सी से टकरा गई।

नज़ीर वाली टैक्सी गाड़ी चकनाचूर हो गई। टैक्सी ड्राइवर और नज़ीर गाड़ी में फँस गये। देखते-देखते सड़क पर भीड़ लग गई। टैक्सी ड्राइवर और नज़ीर को गाड़ी से घसीट कर बाहर निकाला गया। पीछे टक्कर मारने वाली गाड़ी अमरीकन गाड़ी थी। उस गाड़ी को तो कुछ बहुत हानि नहीं पहुंची। परन्तु उस टैक्सी, जिसमें नज़ीर को समझ आया था कि वह गाड़ी की पीठ और अगली सीट की पीठ में सैण्डविच की भांति पिचक जाने वाली है। जब वह बचकर निकली तो टैक्सी ड्राइवर घायल होने पर भी अमेरिकन गाड़ी के ड्राइवर को पकड़ बैठा और बोला, ‘‘थाने में चलो।’’

‘‘आप दोनों को मैं हस्पताल पहुंचा सकता हूं।’’ अमेरिकन गाड़ी में सवार ने कहा।

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